कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें आली जी की तीसरे दिन के प्रवचन में कहा कि श्रीपाल मैना सुंदरी गुरुदेव के सामने वाणी श्रवण कर रहे थे।
गुरुदेव ने कहा कि नवपद की आराधना आयंबिल की विधि के साथ करो जिससे सब अच्छा होता है! साल में दो बार चैत्र और आसोज में सप्तमी से पूनम तक 9 दिन तप और जप करने से आनंद होता है! इस महामंत्र के जाप से रोग शोक दुख दारिद्र आधि व्याधि और उपाधि एवं भूत प्रेत डाकनी साकिनी आदि सब दूर होते हैं, जो अपुत्रियां अर्थात जिसके संतान नहीं है उसके संतान हो जाती है।
जिसके पास धन नहीं है तो वह भी धनवान हो जाता है। रुका हुआ कार्य भी बन जाता है। ऐसी शक्ति है इस महामंत्र में, उसी समय गुरुदेव के दर्शन करने के लिये एक श्रावक आये, तो उन्हें इशारा किया ये साधर्मी भाई को तप जप साधना करना है। तुरंत भाई ने गुरुदेव की बात को स्वीकार करके श्रीपाल मैना को लेकर अपने घर आकर एक कमरे में रहने की व्यवस्था व आयंबिल का भोजन व पानी का पूरा पूरा ध्यान रखा।
पहले ही आयंबिल में कोढ़ रोग की जड़ खत्म हो गया दूसरे दिन घाव भरना शुरू हो गया नौवें दिन तो कंचन जैसी काया हो गई। नगर में चर्चा होने लगी धर्म के प्रभाव से यह बीमारी दूर हो गई। वे सातसौ कोढ़ी भी आये जिन पर मैना सती ने नवपद का जाप करके पानी का छिट काव सभी पर किया जिससे वे सभी निरोग हो गये। वे लोग गुणगान करते हुवे अपने स्थान पर लौट गये।
एक बार गुरुदेव के दर्शन करके लौट रहे थे रास्ते में माता कमल प्रभा रानी का मिलाप हुआ, मां ने देखा मेरा पुत्र स्वस्थ हो गया पूछने पर पुत्र ने कहा यह आपकी बहू का कमाल है। मैं रोग रहित हुआ साथ ही धर्म की भी प्राप्ति हुई। यह सब मैना की कृपा से हुआ है। माता ने मैना को बहुत-बहुत आशीर्वाद देते हुए कहा जब तक सूरज चांद है गंगा जमुना का प्रवाह है तब तक तुम्हारा सुख सौभाग्य अटल है पूतो फलो धुंधो नाओ।
फिर माता को लेकर गुरुदेव के दर्शन करने गये, वहां पर प्रवचन सुनने लगे उधर मैना की मां भी आई थी माँ ने देखा की बेटी किसी अन्य पुरुष के साथ कैसे हैं क्योंकि कोढ़ी के साथ शादी हुई थी। यह तो सुंदर स्वरूप वान है लगता है इसने हमारे कुल में दाग लगा दिया है। इससे तो यह जन्म लेते हैं मर जाति तो इतना दुख नहीं होता तब मैना ने मां से कहा ये वही है जिसके साथ शादी हुई!
गुरुदेव के बताये जप तप करने से ठीक हुवे तब मां को संतोष हुआ मैना की सासु मां से बात करने पर पता चला श्रीपाल चंपापुरी का राजा है। रानी ने अपने भाई पुण्यपाल को सब बताया और कहा भाणेज जवाई को घर लेकर के आओ। सम्मान के साथ महलों में लाये वहां आनंद से रहने लगे एक दिन बगीचे में घूम रहे थे। पऊपाल राजा ने देखा और मैना को बुरा भला कहने लगे, तब पुण्य पाल ने कहा जीजाजी यह वही है जिसके साथ विवाह हुआ यह तो धर्म के प्रभाव से शरीर निरोग हुआ है।
राजा ने माना कि लड़की आप कर्मी होती है। अपनी रानी पुत्री जमाई व कमल प्रभा रानी को साथ लेकर धूमधाम से नगर में घुमा कर के महलों में लेकर आये। आनंद मौज करते हुए दिन व्यतीत हो रहे थे। रोजाना बाग बगीचे में घूमने जाते थे एक दिन श्रीपाल जी वन विहार के लिये जा रहे थे तब उनको देखने के लिये बाजार में दुकानों पर मकान की छतों पर जिसको जहां जगह मिलती वो वहीं खड़े होकर श्रीपालजी के भव्य सुंदर सलोने शरीर को टक टकी लगा कर देखने लगे।
एक घर की छत पर मां बेटी देख रहे थे तब बेटी ने पूछा मां यह कौन है इंद्र चंद्र सूर्य राम काम या मुरारी कौन है। तब मां जोर से बोलती है बेटी यह अपने राजा के खास जमाई है। यह शब्द श्रीपाल के कानो से ह्रदय में उतर गये – सोचा मेरे नाम से नहीं ससुर के नाम से जानते हैं। अपने नाम से पहचाना जाये वह उत्तम पुरुष पिता के नाम से मध्यम पुरुष मामा के नाम से अधम पुरुष और ससुराल के नाम से जाना जाये।
वह अधमा अधम पुरुष कहलाता है। अब मुझे यहां नहीं रहना राजा ने उदास देख करके पूछा क्या किसी ने अपमान किया था। आज्ञा नहीं मानी क्या कारण है। उदासी का बताये चंपा का राजा लेना हो तो चढ़ाई करे श्रीपाल ने कहा नहीं चंपा का राज़ में अपने बाहुबल से लूंगा अभी तो परदेश मैं जाकर के किस्मत अजमाना चाहता हूँ। माँ को मालूम हुआ तो रोकने का प्रयास किया पर आखिर इजाजत देनी पड़ी। माँ ने कहा महामंत्र का जाप हमेशा करते रहना ओर परदेश में सावधान रहना धर्म के प्रताप से सब काम अच्छा होगा। ऐसा बोल कर के माथे पर तिलक करके विदा किया।