कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान महावीर स्वामी क्षायिक ज्ञान। क्षायिक दर्शन और क्षायिक यथा रव्यात चारित्र के द्वारा कर्मों का अंत करके लोक के अग्रभाग पर परम पद मुक्ति को प्राप्त किया जहां से पुन आने वाले नहीं।
चार गति मे जीवो का आवागमन होता है पर मोक्ष गति में जाने के पश्चात कोई भी आत्मा कभी भी वापस जन्म धारण करने वाली नहीं है। कुछ लोग हैं जिनकी यह मान्यता है कि वापस जन्म लेंगे। पुनरा वृत्ती होने वाली नहीं इसीलिए इसे कहते हैं अपुनावृत्ति वहां जाने के बाद वापस आने का कोई भी कारण नहीं है जिस तरह से अनाज का बीज जल जाता है या कोई तोड़ देते हैं – तोड़ने के बाद उसमें से अंकुर नहीं फुट सकते उसी प्रकार जब आत्मा के संपूर्ण कर्म नष्ट हो जाते हैं तब वह आत्मा पुनः संसार में आकर जन्म मरण नहीं करना पड़ता है – प्रभु को सिद्धावस्था प्राप्त होने के बाद नींद तन्द्रा भय भ्रांति राग द्वेष पीड़ा और संयम से रहित हो जाते हैं वहां शरीर इंद्रिय शोक मोह जरा जन्म मृत्यु आदि कुछ भी नहीं जो कि हमेशा आनंदमय रहते हैं उनका आत्मा वैभव कल्पना तीत है परम पद पर विराजमान है संसार की झंझोटों से रहित है।
जिनको कुछ करने का शेष नहीं रहा है ऐसे कृत कृत्य है अचल स्थिति है आत्म प्रदेश के कंपन से भी रहित है , सदा – सदा के लिये लोक के शिखर पर विराजित है अनुपम है जिस तरह से आकाश और काल अनंत है सिद्धा वचनानीत है स्वयं तीर्थ कर भगवान भी मोक्ष का परम सुख का वर्णन पूर्ण रूप से करने में असमर्थ है।