चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा प्रभु महावीर ने जीवों को तारने के लिए चार तीर्थों की स्थापना की।
चार तीर्थों में साधु-साध्वी रूपी तीर्थ तो उस बड़े जहाज या स्टीमर के समान है जिस पर सवार होकर व्यक्ति आराम से समुद्र को पार कर सकता है, जबकि श्रावक-श्राविका उस छोटी नाव के समान है जिसके सहारे जीव थोड़ी बहुत प्रगति करते हुए जहाज तक पहुंच सकता है। चाहे आगार धर्म हो या अणगार धर्म, दोनों ही धर्म तरने के साधन है!
भगवान ने चार तीर्थों के अंतर्गत मुख्य रूप से दो माध्यम बताए हैं। जब तक श्रावक वर्ग मजबूत नहीं होगा तब तक साधु वर्ग भी स्थिर नहीं रह सकता। दोनों का परस्पर संबंध जुड़ा हुआ है।
अगर नींव मजबूत हो धरातल शुद्ध हो तो, कहीं कोई समस्या ही नहीं रहेगी। आज सब चर्चा तो खूब करते हैं पर चर्या पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते। अम्मापियरो की तरह श्रावक बनना चाहते है तो उसके लिए पहले अपने धरातल को मजबूत बनाना होगा। एक ऐसे श्रावक बनना है जो सभी के लिए स्वयं एक आदर्श बनें।
मुनिवृन्द के सानिध्य में सामूहिक अभिग्रह एकासन का आयोजन हुआ जिसमें 130 से अधिक श्रावक, श्राविकाओं ने तप किया। जे.पी.पी. जैन महिला फाउंडेशन के तत्वावधान में शनिवार दोपहर 2 बजे को जयमल प्रीमियर लीग 2019 जैन क्रिकेट वीडियो क्विज प्रतियोगिता का उद्घाटन होगा।