कोडम्बाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 23 अगस्त 2022 मंगलवार को परम पूज्य सुधाकवर जी मसा आदि ठाणा पांच के मुखारविंद से:-महाप्रभु महावीर की मंगलमय वाणी से उत्तराध्ययन सूत्र के चौथे आवश्यक प्रतिक्रमण को आत्मा के लिए हितकारी, कल्याणकारी, जैन धर्म के प्राण, कर्मों का क्षय करने वाले तथा आत्मा रूपी चादर को बेदाग बनाने के लिए प्रतिक्रमण बताया है! चंड कौशिक सर्प जिसके विष से आसपास के वृक्ष और पशु पक्षी नष्ट हो जाते थे, उसने कषाय का प्रतिक्रमण करके अपने जीवन का उद्धार किया था!
ध्यान साधना में लीन प्रभु महावीर को चंड कौशिक नाग ने पांव के अंगूठे पर तीन बार पर डंक मारा! अंगूठे से रक्त के बदले दूध की पवित्र धारा को देखकर कौशिक ने पश्चाताप किया और उस पश्चाताप की वजह से उन्हें जाति स्मरण हुआ! पहले जन्म में मुनि थे और अपने अशुभ कर्मों के कारण तिर्यंच गति में जाकर वे सर्प बने! इसके बाद चंडकौशिक नाग ने अपने कर्मों का क्षय करने के लिए बांबी में मुंह डालकर शांत हो गए! लोग दूध फल फूल से उनकी पूजा करने लगे, जिसकी वजह से चीटियों का झुंड एकत्रित हो गया और उसकी चमड़ी को खाकर छलनी कर दिया और चंडकौशिक ने “कषाय प्रतिक्रमण” करके आठवां देवलोक प्राप्त किया!
सुयशा श्रीजी, मसा के मुखारविंद से:-समय बहुत दुर्लभ है और कीमती है! हमारे जीवन में हम पर नियंत्रण करने वाले आदर्श पुरुषों की और गुरु भगवंतो की बहुत जरूरत है! लेकिन एक स्टेज पर पहुंचने के बाद हम किसी की सुनते नहीं हैं हम हमें सर्वे सर्वा समझते हैं! ज्यादा स्वतंत्र होना माने ज्यादा स्वच्छंद और ज्यादा उद्दंडता होती है! देश को संविधान के साथ चलाने के लिए प्रधानमंत्री की जरूरत होती है प्रदेश को सुचारू रूप से चलाने के लिए मुख्यमंत्री की जरूरत होती है, वैसे ही हमारे जीवन में आदर्श पुरुषों की और गुरु भगवंतो की बहुत जरूरत होती है!
हम दिल बुद्धि दिमाग और मन के प्रयोग से सभी निर्णय लेते हैं! बुद्धि और मन हमारे लिए क्या फायदेमंद है, वही बताता है! लेकिन हमारा अंतःकरण हमसे वही कराता है जो हमारे लिए हमारे जीवन के लिए अच्छा है! अंत:करण की आवाज शांत चित्त से बैठकर ध्यान करने पर ही सुनाई देती है! अंतःकरण वह साइन बोर्ड है जो हमें रास्ते पर होने वाले मोड या खतरे से सावधान करता है! लेकिन हम खतरा लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं तो साइन बोर्ड हमारे साथ नहीं चलता और हमें नहीं मनाता! वैसे ही अंतःकरण हमें सावधान जरूर करता है लेकिन जबरदस्ती नहीं करता!
मन चंगा तो कठौती में गंगा! यह तो कहावत है! लेकिन हमारे परमात्मा ने आगम, भाव प्रतिक्रमण और सामायिक को और दान, शील, तप, भावना को उत्कृष्ट जरिया बताया है हमारे कर्मों की निर्जरा करने के लिए! महापर्व पर्युषण के 8 दिनों में हमें कुछ भी खर्च करना नहीं है घूमना फिरना नहीं है! हमें तो सिर्फ छोटे-छोटे त्याग करने है! हमारा सिद्धांत अपरिग्रह होना चाहिए! आज के धर्म सभा में भीलवाड़ा कोयंबटूर एवं जन चैन्नई के कई उपनगरों से श्रद्धालु गण उपस्थित हुए।