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गृहस्थ संसार में रहते हुए भी आत्म कल्याण करें: जयतिलक जी मरासा

गृहस्थ संसार में रहते हुए भी आत्म कल्याण करें: जयतिलक जी मरासा

रायपुरम जैन भवन में जयतिलक जी मरासा ने फरमाया कि गृहस्थों के लिए संसार में रहते हुए भी आत्म कल्याण कर सके। संसारी के अभी तक आसक्त निवृत नहीं हुआ! अतः मर्यादा में रह कर आत्म कल्याण कर सके।

12 व्रत में पूर्ण अहिंसा व्रत का निरुपण है उस एक व्रत के सुख के लिए शेष 11 व्रत का निरुपण किया जिण धर्म का एक मात्र का लक्ष्य है किसी भी कारण से विराधना न हो। शुभ कर्मो का आगमन होता है। सामायिक में शुभाशुभ कर्मो का आगमन रुक जाता है जो मोक्ष की ओर ले जाता है। एकांत रूप से पाप का त्याग हो जाता है, सामायिक व्रत के बिना तीर्थकर गोत्र का बंध भी नहीं होता है। श्रावक को आत्म साधना के लिए समय निकाल कर सामायिक करे। अपने सामायिक करने का एक निश्चित समय रखें।

जिससे क्रम न टुटे। धर्म की प्रवृति मन टालो । धर्म को महत्व दो धन को नहीं। स्वयं को तारने के लिए सामायिक अनिवार्य है। सामयिक यदि न हो सके तो उसका पश्चाताप होना ही जीव के धर्म की निशानी है। एक सामायिक संसार को घटाकर, सिद्धि दिलाने में समर्थ है जीव के चारित्र गुणो का विकास होता है! सामायिक ऐसी चीज है जिससे मानसिक बिमारियों को दुर करता है। शरीर का सारा सीस्टम बराबर काम करता है तो नींद भी व्यवस्थित हो जाती है ‌। व्यक्ति के पास पर्याप्त समय है।

लेकिन वह प्रमाद वश नहीं कर पाता है कम से कम एक सामायिक प्रतिदिन अवश्य करनी चाहिए। बस मन से सामायिक करो। रुचि जागृत होनी चाहिए। सामायिक करने के बाद आत्मचिंतन करो जितना आत्म पोशन हुआ। ऐसा लाभ इस सामायिक में है। सामायिक का संकल्प करने वाला अवगुणों को दूर कर गुणों को धारण करता है। सामायिक मधुमक्खी का छाता है जिसमें रानी मधुमक्खी के साथ मक्खीया आ जाती है, वैसे ही सामायिक रानी मधुमक्खी है जिसके पीछे सारे गुण आ जाते है! जिस दिन सारे अवगुण दूर हो गये गुण प्रकट हो गये वही आपकी सिद्धि है। सिध्द शिला है, मोक्ष है। शिध्द शिला की तरह जीव सामायिक में मात्र ज्ञान दर्शन में हीं रमण करता है। सामायिक सिद्धों के सुख की अनुभूती है।

सामायिक ज्यादा तर लोग जबरदस्ती करते है। कुछ ही मन से सामायिक करते है। प्रतिदिन एक सामायिक का नियम अनिवार्य है। सामायिक सभी प्रकार से हितकारी है मंगलकारी है। द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव, परिस्थिति देखकर सामायिक करे। जिसमे आपको कोई बाधा नहीं होगी विधि पूर्वक सामायिक करने में सामायिक के दोषों का प्रतिक्रमण हो जाता है विधि से विनय गुण प्रकट होता है! यह जानकारी ज्ञानचंद कोठारी ने दी।

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