चेन्नई. प्रभु महावीर ने आत्म कल्याण के दो रास्ते फरमाए हैं एक आगार धर्म और दूसरे अणगार धर्म। यानि साधु का धर्म और गृहस्थ धर्म। साधु साध्वी के लिए भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य महाव्रत का विधान दिया है तो गृहस्थ के लिए शील व्रत के पालन की बात कही है। पति और पत्नी यदि परस्पर अपने रिश्तों के प्रति ईमानदार रहते हैं तो प्रभु महावीर के शब्दों में वह गृहस्थ भी तीर्थ बन जाता है। यह विचार ओजस्वी वक्ता डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में प्रवचन सभा में उपस्थित श्रद्धालु भाई – बहनों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा एक सद्गृहस्थ पुरुष के लिए प्रभु महावीर फरमाते हैं कि वह केवल अपनी पत्नी के अतिरिक्त संसार की नारी जाति को माता, बहन, पुत्री के समान देखे। जहां महिलाओं के लिए पति व्रत धर्म की दुहाई दी जाती हैं, वहां पुरुषों को भी पत्नीव्रत धर्म का पालन करना चाहिए। यदि पति पत्नी अपने रिश्तों को प्रामाणिकता से निभाते हैं तो वे आध्यात्मिक लाभ तो पाते ही हैं साथ ही शारीरिक दृष्टि से भी स्वस्थ रहते हैं। तथा घर का वातावरण एवं दांपत्य जीवन भी प्रेम पूर्ण बनता है। प्रभु महावीर फरमाते हैं
एक सद्गृहस्थ नारी के लिए, वह कैसी हो धर्म में सहायक हो। अर्थात पति को अच्छी राह पर लगाने वाली हो। दूसरी बात एक सच्ची धर्मपत्नी डॉक्टर के समान होती है। यदि मरीज के शरीर में कोई रोग हो जो गोली या इंजेक्शन से भी दूर नहीं होता तो, डॉक्टर ऑपरेशन करता है। ऐसे ही यदि पति के जीवन में कोई दुव्र्यसन हो शराब, मांसाहार, जुआ, सट्टा आदि तो एक वैद्य की भूमिका निभाते हुए सच्ची धर्मपत्नी अपने पति को उन गलत आदतों से बचाती है।
तीसरी बात जहां सुख में एक गृहणी अपने पति का साथ देती है वही दुख में भी उसे अपने पति का साथ देना चाहिए। घर में मौज बहार हो उस समय नई-नई फरमाईशें करना पर कभी पति के जीवन में दु:ख का समय आ जाए तो पत्नी को पीहर (मायका) याद आए तो वह पत्नी तो हो सकती है परंतु धर्मपत्नी कह लाने की अधिकारी नहीं होती। प्रवचन सभा में श्री मरुधर केसरी जैन महिला मण्डल की बहनों ने भी विशेष रूप से गुरु दर्शन एवं प्रवचन श्रवण का लाभ लिया। श्रीसंघ की ओर से उनका सम्मान किया गया।