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गृहस्थ धर्म तिरने का साधन है: जयधुरंधर मुनि

गृहस्थ धर्म तिरने का साधन है: जयधुरंधर मुनि
वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में श्रावक के बारह व्रत पर शिविर का शुभारंभ हुआ। दो प्रकार के धर्मों का विवेचन करते हुए ग्रहस्थ धर्म को तिरने का साधन बताया गया है। आत्मरक्षा के लिए प्रतिष्ठान का परकोटा बनाना आवश्यक है।
व्रत ग्रहण करने से पहाड़ जितने पाप राई जितने रह जाते हैं । गृहस्थ में रहते हुए भी धर्म का पालन करते हुए आत्मा का कल्याण किया जा सकता है । गृह कार्यों में विवेक जुड़ा हुआ रहता है , तो सहज ही उस प्रवृत्ति में निवृत्ति भी जुड़ जाती है। 12 व्रत ही श्रावक धर्म का मूल आधार है।
भगवान महावीर द्वारा वर्णित आदर्श आचार संहिता का पालन करने वाला ही सच्चा श्रावक और अच्छा श्रावक बन सकता है। व्रत लेने से साधक का जीवन मर्यादित बन जाता है और वह ना करने योग्य कार्यों से बचाव करते हुए उससे संबंध विच्छेद कर डालता है। जो क्रिया कर रहे हैं वही आश्रव नहीं अपितु व्रत नहीं लेने पर भी आश्रव का द्वार खुला रहता है।
12 व्रत अनावश्यक अकरणीय अनर्थ पापों से बचने का सहज माध्यम है । व्रतों से डरने के बजाय उसके मर्म को समझते हुए जीवन में अंगीकार करने की आवश्यकता है। 12 व्रत में नैतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक आदि सभी प्रकार की शिक्षाओं का समावेश हो जाता है। हर मनुष्य सामाजिक, राष्ट्रीय, धार्मिक नियमों से बंधा होने पर ही सुरक्षित रह सकता है ।
जहां छूट है वहां लूट है । जबकि जहां नियम है वहां सुरक्षा है और शांति है । मर्यादा में रहने पर ही व्यक्ति की शोभा होती है । व्रत का अर्थ होता है वरन करना यानी आश्रव का द्वार बंद करना ।
एक दृष्टांत के माध्यम से मुनि ने समझाया की संबंध विच्छेद ना करने से कितना नुकसान हो सकता है । 11 गणधर की साधना का भी आज शुभारंभ हुआ, जिसमें 75 से अधिक आराधिकाओं ने हिस्सा लिया।
धर्म सभा का संचालन महिपाल चोरडिया ने किया।

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