सेलम. यहां शंकर नगर स्थित जैन स्थानक में विराजित वीरेन्द्रमुनि ने सुख विपाक सूत्र की विवेचना करते हुए कहा आर्य जम्बू स्वामी के पूछने पर आर्य सुधर्मा स्वामी ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी अदिनशत्रु राजा व प्रजा और युवराज सुबाहू कुमार को आगार धर्म और अणगार धर्म का विवेचन के साथ सुना रहे थे, अणगार धर्म यानी कि मुनि धर्म जिसमें पांच महाव्रत 5 समिति और 3 गुप्ती का पालन करते हुए जीवन निर्वाह करते हैं वही तारणहार कहलाते हैं।
आगार धर्म यानी कि छूट है जिसके घर- परिवार है वह आगार धर्म है। जिसने घर परिवार को त्याग दिया है और पांच महाव्रत आदि धारण करके भगवान के बताए संयम के मार्ग पर चल रहे हैं वे अणगार कहलाते हैं। भगवान ने आपके व्रतों में छूट दी है तो उसका विवेक (यतना) के साथ गृहस्थ धर्म का पालन करना चाहिए। श्रावक के 12 व्रत हैं उनमें से पहला अहिंसा व्रत है।
अहिंसा व्रत का पालन करना बहुत ही कठिन है, क्योंकि इतने सूक्ष्म जीव होते हैं जो अपनी आंखों से दिखाई नहीं देते, परंतु हम विवेक रखें जितना आवश्यक हो। पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय एकइन्द्रिय जीव कहलाते हैं।
इनके शरीर है और उपयोग सभी को करना पड़ता है। पृथ्वी पर रहने के लिए मकान बनवाने के लिए पृथ्वी का छेदन-भेदन करना पड़ता है, गृहस्थ को छूट दी पर जितना आवश्यक है उतना ही पृथ्वी का छेदन-भेदन करना परंतु अनावश्यक पृथ्वीकाय जीवों को नहीं सताना।
पानी को भी अनाश्यक उपयोग नहीं करना क्योंकि पानी स्वयं जीव है तो उसे विवेक से काम लें। अग्निकाय के जीवों आवश्यकता पर उपयोग करें। वायुकाय का भी उपयोग आवश्यकता के अनुसार करें।