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गृहस्थ जीवन में अतिथि सत्कार करना सबसे बड़ा पुण्य: साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी

गृहस्थ जीवन में अतिथि सत्कार करना सबसे बड़ा पुण्य: साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी

चार पीढ़ी परिवारों का सम्मान 12 को

बेंगलूरु। विश्वविख्यात अनुष्ठान आराधिका, ज्योतिष चंद्रिका एवं जैन दिवाकरीय शासनसिंहनी साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी ने शुक्रवार को ‘अतिथि देवोभव’ विषयक प्रवचन में जीवन में अतिथि सत्कार के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि घर आए किसी भी अतिथि का सत्कार पूर्ण श्रद्धाभाव से होना चाहिए। अतिथि के रुप में कभी भी देवता आपके द्वार पर आकर आपके भंडार भर सकते हैं।
गुरु दिवाकर केवल कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान में आयोजित चातुर्मासिक पर्व की धर्मसभा में साध्वीश्री ने एक कथा-प्रसंग के माध्यम से अतिथि देवोभव का मार्मिक उदाहरण भी सुनाया। वर्षों से अतिथि का स्वागत, सम्मान और सत्कार को भारतीय संस्कृति की अनूठी और पवित्र परंपरा बताते हुए अतिथि सत्कार के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बदले अर्थ पर चिंता व्यक्त की तथा साध्वीश्री ने चातुर्मास के दौरान अतिथि सत्कार में बेंगलुरुवासियों के आतिथ्य की खूब अनुमोदना की।
उन्होंने कहा कि गृहस्थ जीवन में अतिथि का सत्कार करना सबसे बड़ा पुण्य माना गया है। घर आए अतिथि को भूखा-प्यासा लोटा देने को पाप समान बताते हुए डाॅ.कुमुदलताजी ने कहा कि अतिथि सत्कार की भावना से व्यक्ति का अहंकार समाप्त होता है। उन्होंने यह भी कहा कि आदर्श घर भी वही होता है, जहां अतिथि सत्कार की परिपाटी का बखूबी निर्वहन होता है। इससे पूर्व साध्वीश्री महाप्रज्ञाजी ने भजन के माध्यम से अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में गुरु के होने को जरुरी बताते हुए कहा कि जीवन के उच्चतम शिखर तक पहुंचाने में गुरु रुपी शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। साध्वीश्री डाॅ.पद्मकीर्तिजी ने कहा कि कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है और बहुत कुछ खोने के बाद कुछ न कुछ प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि जिस दिन सबकुछ मिल जाएगा उस दिन यह संसार भी असार बन जाएगा।
साध्वीश्री राजकीर्तिजी ने कुछ, कुछ-कुछ, बहुत कुछ व सबकुछ इन चार शब्दों की विस्तार से व्याख्या करते हुए कहा कि यह शब्द मात्र नहीं, बल्कि चारधाम तथा जीवन कहानी की यात्रा है। उन्होंने कहा कि मानव भव के रुप में व्यक्ति को इस नश्वर संसार में जो भी मिला है उससे संतोष करना चाहिए। समिति के महामंत्री चेतन दरड़ा ने बताया कि बड़ी संख्या में 11 व इससे अधिक उपवास की तपस्या पूर करने वाले तपस्वीवृंद का सम्मान समिति पदाधिकारियों द्वारा किया गया।
इस अवसर पर चेन्नई के सुश्रावक भामाशाह रतनलाल सिसोदिया, वाइसराज सिसोदिया, महावीरचंद डूंगरवाल सहित अनेक अतिथियों का भी साध्वीवृंद की निश्रा में सत्कार किया गया। चेतन दरड़ा ने बताया कि साध्वीजी की प्रेरणा से अनंत चतुर्दशी पर्व पर 12 सितंबर को समिति के तत्वावधान में बेंगलूरु के चार पीढ़ी के करीब 250 से अधिक परिवारों का सम्मान किया जाएगा।
समिति के सहमंत्री अशोक रांका ने बताया कि साध्वीश्री डाॅ.पद्मकीर्तिजी की निश्रा में लगातार साप्ताहिक आठवें शुक्रवार को पद्मावती एकासना विधि का कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस अवसर पर चेन्नई, पनवेल, चित्तोड़, बीड़ व श्रीरामपुर सहित शहर के विभिन्न उपनगरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रवचन श्रवण में एवं मांगलिक आशीर्वाद के लिए भागीदारी निभायी।
उन्होंने बताया कि पीयूष जैन, नवीन बोथरा, प्रेम कोठारी व महिला मंडल की सदस्याओं ने अतिथि सत्कार से जुड़ी गीतिकाओं की प्रस्तुति दी। जयजिनेंद्र प्रतियोगिता के विजेताओं में रमेश सिसोदिया, कांता छलाणी व उषा मुथा को पुरस्कृत किया गया। धर्मसभा का संचालन चेतन दरड़ा ने किया। सभी का आभार समिति के युवा मार्गदर्शक पुखराज आंचलिया ने जताया।

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