तेरापंथ स्थापना पर बताई गुरु की महिमा
माधावरम्, चेन्नई 13.07.2022 ; जो शिष्य गुरु के चरणों में अहंकार – मंमकार का विसर्जन कर अपने आप को सर्वात्मना समर्पित कर देता है, वह हर कार्य में सफल हो जाता है, सिद्धि को प्राप्त कर सकता है। उपरोक्त विचार मुनि सुधाकर ने जय समवसरण, जैन तेरापंथ नगर, माधावरम् में गुरु पूर्णिमा एवं 263वें तेरापंथ स्थापना दिवस पर “गुरु ही गंगा, गुरु ही तीर्थ” विषय पर व्याख्यानमाला में कहें।
गुरु की व्याख्या करते हुए मुनि सुधाकर ने कहा गु यानी अंधकार और रु यानी मिटाने वाले, अर्थात जीवन के अंधकार को मिटाने वाले गुरु होते हैं। गुरु के आशीर्वाद से ही आत्मबल, मनोबल, ज्ञानबल जागृत होता है। गंगा पाप का नाश करती है, चंद्रमा ताप का नाश करता हैं, कल्पवृक्ष अभिशाप का नाश और संत संताप का नाश करते हैं। वही गुरु के आशीर्वाद से पाप, ताप, संताप, अभिशाप चारों का नाश हो जाता है। शरीर निर्माण के लिए मां-बाप जरूरी है। पर जिंदगी के निर्माण के लिए गुरु जरूरी है। यदि गुरु की कृपा हो तो कंकर भी शंकर बन जाता है। गुरु अपने आप में धरती में चलता फिरता तीर्थ है। जो हमारे गम को खुशी में, अशांति को शांति में, अभाव को भाव में बदल दे- वही गुरु हैं। अपने आराध्य आचार्य भिक्षु की अभिवन्दना करते हुए मुनिश्री ने कहा आचार्य श्री भिक्षु विशिष्ट साधना सम्पन्न आचार्य थे। आप अहिंसक चेतना के धनी थे। सत्य के आराधक थे। आप आत्मसाधना के उद्देश्य से साधना में सलग्न बने और आपकी विशेषज्ञता से लोग जुड़ते गये और तेरापंथ रुपी पगदड़ी, राजमार्ग बन गया, जैन धर्म का पर्याय बन गया।
मुनि नरेशकुमार ने कहा आचार्य भिक्षु ऐसे शक्तिशाली संत थे, जो लोगों के अंतिम स्थल श्मशान को ही अपना प्रथम प्रवास स्थल बनाया।
प्रबंध न्यासी घीसूलालजी बोहरा, मण्डियां से समागत रीकूं दक, सुरेश रांका, सम्पतराज सेठीया ने भी गुरु के आराध्य में आराधना समर्पित की। मड्या तेरापंथ सभा अध्यक्ष नरेन्द्रकुमार दक का ट्रस्ट बोर्ड की ओर से अभिनन्दन किया गया। शाम को “श्रद्धा स्वर भिक्षु भावांजलि” पर आराधकों ने स्वर लहरीयों से अपने श्रद्धा सुमन समर्पित किये।
स्वरुप चन्द दाँती
मीडिया प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ ट्रस्ट, माधावरम्
सहमंत्री
अणुव्रत समिति, चेन्नई