एएमकेएम में हुई सात वार में गुरुवार की चर्चा
एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी ने शनिवार को आठ वार की प्रवचन माला में उपस्थित श्रद्धालुओं को गुरु तत्व की विवेचना करते हुए कहा कि भाग्यशाली का अर्थ है जिसका पुण्य तेज हो। वैसे भाग्य दोनों प्रकार के होते हैं सौभाग्य और दुर्भाग्य। लेकिन भाग्यशाली उसे कहा जाता है जिसकी क़िस्मत अच्छी हो। जो अपने पास रहे हुए पुण्य के प्रभाव, पुण्य के उदय को सबके साथ बांटने का भाव रखता हो, जिसको सब बातें अनुकूल मिले।
उन्होंने सात वार के विश्लेषण में गुरुवार की चर्चा करते हुए कहा कि यह गुरुवार सात वार में सबसे मध्य में आता है। वैसे ही हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में, कार्य में गुरु केंद्रवती है। यदि हमारा गुरु मजबूत है तो हर जगह विजय मिलती है। गुरु बलवान है तो वह सच्चा मार्ग दिखाता है। वह जीवन में उजाला करने वाला है। देव, गुरु, धर्म तत्वों में भी गुरु मध्य में है। मध्य में उसी को रखा जाता है जो समर्थ हो, शक्तिशाली हो। उसी के आसपास सभी कार्य चलते हैं। ऐसा मत सोचना कि गुरु उंगली पकड़कर चलाते हैं। वह संकेत आपको किसी भी रूप में मिल सकता है। वही तो हमारे भीतर में रहा हुआ गुरु तत्व का प्रभाव होता है।
उन्होंने कहा गुरु हमारे जीवन का केंद्र, मार्गदर्शक होता हैं। अगर चलने की इच्छा ही नहीं है, हमारा कोई लक्ष्य ही नहीं है तो मार्गदर्शक भी क्या कर सकता है। गुरु के बताए मार्ग पर चलने के लिए बहुत तैयारी लगती है। जो व्यक्ति रास्ते में आए कांटों को दूर कर, औरों के लिए भी रास्ता साफ नहीं कर सकता, उसको जीवन में आगे स्वतंत्रता से आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती। गुरु तत्व हमको जिम्मेदारी का अहसास कराता है। वह मार्ग बताने वाला है। उस मार्ग पर चलने की तैयारी होनी चाहिए।
उन्होंने कहा गुरु वाणी का स्वामी है। वह वाणी को मधुर बनाता है। जिस व्यक्ति के शब्द तोल मोल कर आते हैं, समझ लेना उसका गुरु प्रबल है। हमारी वाणी का नियंत्रित, मधुर होना हमारे भीतर में रहे हुए गुरु तत्व के सक्रिय होने का अहसास हैं। जिसने गुरु की शिक्षा को जीवन में धारण किया, वह साधक है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिसका गुरु उदय हो, जितने अन्य ग्रह नीच हो, उसे ज्यादा परेशानी नहीं आ सकती, जिससे वह निराश हो जाए। हमें हमारे वचनों, शब्दों, भाषा का संभलकर उपयोग करना चाहिए। हमें हमारे मन में गुरुजनों के प्रति श्रद्धा, आदर के भाव रखना चाहिए। गुरु तत्व को सशक्त बनाने के लिए बड़ों का सम्मान करना चाहिए। अपनी संतान के सामने कभी बड़ों का अपमान नहीं करना चाहिए। इससे हमारा गुरु ग्रह कमजोर बनता है।
उन्होंने कहा जब मन में बड़ों के प्रति तिरस्कार, अविनय की भावना आती है, अपने आप को नियंत्रित कर लो। जो गुरु से जुड़ा है, वह भाग्यशाली होता है। गुरु भाग्य को चमकाने वाला है। ये बातें पुस्तकें, ग्रंथों की कही हुई नहीं है। जहां गुरु तत्व है, वहां लज्जा, दया, संयम, तप है। गुरु की आराधना से वाणी को मधुर बना सकते हैं। अपने भाग्य को तेज बना सकते हैं। सारी कमजोर शक्तियों को बलशाली बना सकते हैं। महासंघ के महामंत्री धर्मीचंद सिंघवी ने बताया कि कल रविवार को प्रवचन दोपहर 2.15 बजे होंगे।