किलपाॅक में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने गुरु तत्व का महत्व बताते हुए कहा साधना के क्षेत्र में गुरु के बिना आज तक एक भी आत्मा मोक्ष में नहीं गई।
आचार्य का सान्निध्य मिलने पर ही संघ व समुदाय में अनुशासन आ सकता है। संघ व समुदाय को उनके अनुशासन में रहना चाहिए, उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।
आचार्य तीर्थंकर के समान है। पिछले 2500 वर्ष में तीर्थंकर व केवली भगवंत का अनुशासन 70 वर्ष रहा, वहीं 2430 वर्ष आचार्य का अनुशासन रहा। उन्होंने कहा जिनशासन 5वे आरे के अंत तक चलने वाला है।
आचार्य में शासन को संवारने की योग्यता है। वे आगम, शास्त्रों से नए तत्वों की खोज करते हैं। वे मोक्ष मार्ग की शुद्ध व भाव प्ररुपणा बताते हैं। आचार्य अपने शिष्यों को चार प्रकार से शिक्षा देते हैं सारणा, वारणा, जोयणा और बड़ी जोयणा। सारणा यानी स्मरण कराना, वारणा यानी जो कार्य करने योग्य नहीं है वह नहीं होने देना।
यदि शिष्य कहना नहीं मानता तो जोयणा करना यानी कठोर शब्दों में आक्रोश करना। यदि जोयणा करने पर भी वह नहीं मानता तो उसको सुधारने के लिए बलपूर्वक प्रेरणा देना। जो आचार्य ये कर्तव्य निभाते हैं वे भावाचार्य है। आचार्य के जीवन में कषाय, विकथा, माया, कपट नहीं होनी चाहिए। हमें उनके प्रति प्रेम व श्रद्धा की भावना होनी चाहिए।
गुरु की निश्रा से ही जीवन में सदाचार के संस्कार आ पाएंगे। प्रवचन के दौरान आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वरजी ने सुमतिवल्लभ नाॅर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ की विनती को स्वीकार करते हुए उनके शिष्य मुनि तीर्थ सुन्दरविजय के 2020 के चातुर्मास की अनुमति दी। संघ ने इसके लिए आचार्य का हृदय से आभार व्यक्त किया। मुनि की प्रेरणा से इसी वर्ष संघ की स्थापना हुई।