किलपॉक श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में विराजित उपाध्यायश्री युगप्रभविजयजी म.सा. ने प्रवचन में कहा कि आर्य संस्कृति में चार हत्याओं को महापाप कहा गया है ब्राह्मण हत्या, स्त्री हत्या, भ्रूण हत्या और गौहत्या। जैन धर्म तो इसे महापाप के रूप में मानता ही है। अन्य धर्म भी इसे महापाप मानते हैं। एक दृष्टांत देते हुए उन्होंने कहा कि जो पाप चमड़ी की तरह चिपके हुए होते हैं, वे पाप कर्म बांधते हैं। व्यसन एक ऐसी चीज है जो आने के बाद निकलनी मुश्किल है।
उन्होंने कहा कि गुणवान व्यक्ति को पाप का डर बना रहता है और वह गुरु की शरण में पहुंच जाता है एवं प्रभुभक्ति में लीन हो जाता है। लेकिन जरूरी नहीं है कि गुणवान भी हमेशा गुणवान बना रहे। अगर उसे अहंकार घेर लेता है तो वह अपने गुणों से भटक जाता है। एक गुणवान व्यक्ति का नजरिया और भाव अलग अलग हो तो दोषों का आकर्षण बढ़ जाता है। गुणवान व्यक्ति भी इस कारण पाप के मार्ग पर चला जाता है। आज का अवगुणी व्यक्ति तीर्थंकर या गणधर की आत्मा बन सकता है। यदि आत्मा को केवल अपना ही दिखता है, उसका कल्याण कभी नहीं हो सकता। अपना अहम ही व्यक्ति को सिखाता है मैं गुणवान हूं।
उन्होंने कहा कि परमात्मा बड़े तारक है और मैं अज्ञानी हूं, ऐसा भाव आने पर ही आत्कमल्याण हो सकता है। मैं स्वयं अज्ञानी हूं, ऐसा भाव आने पर ही आप योगी बन सकते हैं। आपके मन में गुणवान व्यक्ति के प्रति गुणानुवाद होना चाहिए। प्रश्नोत्तरी में उन्होंने बताया कि सम्प्रति महाराजा का हर रोज एक प्रतिमा भरवाने का नियम था। उनकी प्रतिमा की मुख्य पहचान प्रतिमा के नीचे शिलालेख नहीं होता है और उसकी जगह पत्तों की बेलनुमा आकृति होती है। संघ में 2 अगस्त से ज्ञान की पाठशाला शुरू होगी। उपाध्याय प्रवर ने बच्चों को पाठशाला भेजने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि अपना प्रमाद त्यागकर और आराधना का समय बदल कर भी बच्चों को पाठशाला भेजने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे बच्चों में धर्म के प्रति जागरूकता आएगी।