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गुणवान बनने की पहली शर्त है गुणज्ञ बनें: साध्वी डॉ.सुप्रभा

गुणवान बनने की पहली शर्त है गुणज्ञ बनें: साध्वी डॉ.सुप्रभा

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ ने धर्मसभा में कहा कि इस जगत में जिसका संयोग होता है उसका वियोग अवश्यंभावी है।

जो आज मिला है उसे एक दिन छोडऩा ही पड़ता है। इस नश्वर संसार में कुछ भी शाश्वत नहीं है। प्रभु महावीर ने कहा है जन्म से मृत्यु के बीच का अनमोल मानव को मिला है, इसे धर्म और सद्कार्यों में व्यतीत करना चाहिए।

सदैव अपनी दृष्टि को गुणज्ञ रखना चाहिए। किसी के गुणों को देखनेवाला उनके गुणों को ग्रहण करता है और किसी के अवगुणों को देखनेवाला दूसरों के अवगुणों को स्वयं में आत्मसात करता है।

साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशुÓ ने कहा कि गुणवान बनने की पहली शर्त है गुणज्ञ बनें। किसी के गुण-दोष देखेंगे तो वे हमारे में भी आएंगे। जगत में सबसे सरल है सलाह देना, दूसरों के दोषों को देखना और अपनी प्रशंसा करना।

महापुरुष कहते हैं जो स्वयं के घर की सफाई करे वह सेठानी, जो दूसरे के घर की सफाई करे वह नौकरानी और जो पूरे गांव की सफाई करे वह मेहतरानी कहलाती है। कोई यदि शरीर पर लगा दाग बताए तो उसके कृतज्ञ होते हैं लेकिन कोई आत्मा के दोष बताए तो उस गुस्सा करते हैं।

जब तक अपने दोषों को नहीं निकालेंगे तब तक सद्गुणों का प्रवेश नहीं होगा। तीर्थंकर प्रभु के बारह गुणों का उदय उनके 18 दोष दूर होने पर प्राप्त होते हैं। वीतराग प्रभु ने स्वयं के दोषों को देख, उन्हें दूर करने पर अनन्त चतुष्टय और तीर्थंकरत्व उपलब्धि होती है, इन्द्र रक्षक रूप में सेवा में रहते हैं।

साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि जगत में दो तत्व हैं- जड़ और चेतन। जड़ में गुणवत्ता भी है और दोषवत्ता भी। जिस प्रकार पुष्प में सुंदरता और खुशबू के साथ कांटे हैं, कस्तूरी में कुरूपता के साथ गुण हैं, मनमोहक किम्पाकफल की मोहकता के साथ स्वस्थ व्यक्ति को भी मारने की क्षमता है।

मनुष्य जगत में हम प्राणियों में भी न तो पूर्ण रूप से गुण है न पूर्ण रूप से अवगुण। सभी में अच्छाई और बुराई दोनों ही गुण निहीत हैं। तीर्थंकर प्रभु कहते हैं तुझे आत्मा का कल्याण करना है तो दूसरों के दोषों को न देखकर उनके गुण देखना है। हंस मोती ग्रहण करता है और कंकड़ों को छोड़ देता है उसी प्रकार हमें भी हंस दृष्टि रखकर सार-सार ग्रहण करना और निसार छोडऩा है।

उत्तराध्ययन में प्रभु ने कहा है विनीत शिष्य गुरु से गुण ग्रहण करता है और दोषों को छोड़ता है। हमें गुणवान बनना है तो दोषों को छोडऩा होगा। पू.गुरुवर्या कहते थे कि दूसरों के दोष कचरे समान हैं उन्हें ग्रहण न करें। यदि हम किसी की बुराईयां देखते हैं तो उन्हें हम अपनी आत्मा में ग्रहण कर रहे हैं। अच्छाईयां जाति, कुल, लिंग, गरीब, अमीर से जुड़ी नहीं है।

धन्ना सेठ ने गुणों के अनुसार ही अपनी पुत्रवधुओं को अलग-अलग कार्यभार सौंपा। कुसंस्कारित नारी घर आ जाए तो स्वर्गमय घर भी नरक बन जाए। शरीर में नाड़ी के समान ही नारी का महत्व घर-परिवार में होता है। हम दूसरों से एक-एक गुण ग्रहण करें और दोषों को छोड़ें तो परिवार में सुख-शांति होगी, एक दिन अरिहंत प्रभु के समान सर्वगुण संपन्न बनेंगे। किसी को सुधारने के लिए उसके दोष भी बताएं तो चिकित्सक के समान बताएंगे तो उसमें अवश्य सुधार होगा।

धर्मसभा में सुश्राविका स्व.माणकबाई धर्मपत्नी स्व.सागरमल पींचा, चेन्नई की श्रद्धांजलि सभा रखी गई। सभा में विनयमुनि महाराज और अन्य संघों से प्राप्त संदेश का पठन और लोगस्सपाठ किया। जैन समाज के अनेकों गणमान्यों ने धर्म के क्षेत्र में उनकी निष्ठा को याद करते हुए अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए और चातुर्मास समिति के सुराणा और पींचा परिवार के प्रति संवेदनाएं व्यक्त की।

धर्मसभा में अनेकों श्रद्धालुओं ने विभिन्नतप के पच्चखान लिए। श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। उत्तराध्ययन सूत्र के मूल पाठ का वाचन प्रात: 8 बजे से और विवेचन 9 बजे से होगा, रात्रि 8 से 9 बजे नवकार महामंत्र का सजोड़े जाप गतिशील है। 19 से 20 अक्टूबर को एक्युपंचर शिविर का आयोजन होगा।

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