चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व डॉ.सुप्रभा के सानिध्य में साध्वी उदितप्रभा ने कहा युद्धभूमि में लाखों योद्धाओं और विशाल सेनाओं पर विजय प्राप्त करने से भी ज्यादा कठिन है स्वयं की आत्मा पर विजय प्राप्त करना। जगत में सदैव राम-रावण, कृष्ण-कंस की तरह सात्विक और आसुरी प्रवृत्तियों का संघर्ष रहा है।
इसी प्रकार मानव हृदय में भी सदा सत्य और असत्य का संघर्ष रहता है। इसमें विजयी वही होता है जिसने अपनी आत्मा को जीत लिया। परपदार्थों पर आसक्त होना वीरता नहीं है, जो अपना दमन करता है वही वीर है और वही दूसरों की प्रवृत्तियों को बदल सकता है। जिस प्रकार भगवान महावीर ने चंडकोशिक और बुद्ध ने हत्यारे अंगुलीमाल को बदला दिया।
समाज हो या घर-परिवार जोडऩे में समय लगता है, तोडऩे में नहीं। जहां प्रेम और समन्वय हो वही काम करना है, तभी आत्मविजयी होंगे। परपदार्थों में सुख माननेवाला कभी सुखी नहीं हो सकता।
साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि प्रभु ने स्वयं साधना कर सिद्धि प्राप्त की और भवि जीवों को संदेश दिया कि तू अपनी आसक्ति से संसार चक्र में उलझा है। यह मानव जन्म मिला है इसमें धर्म नहीं ग्रहण किया तो फिर से 84 लाख जीवयोनि का चक्कर होगा। धर्म वर्तमान में शांति देता है, अंतिम समय में समाधि और जहां भी जाएगा वहां पर सद्गति देता है।
धर्म किसी समय, क्षेत्र, बंधन में बंधा नहीं, इसे अपनाने में कोई हानि नहीं। धर्म कामधेनु और कल्पवृक्ष के समान है। सांसारिक दु:खों की कड़ी धूप में शीतल छांव और शांति देता है। धर्म की जड़ें गहरी होती हैं जो इससे जुड़ता है उसके जीवन में कितने ही पतझड़ जैसे दुख आ जाए, वह शांति से सहन कर सकता है और उसके जीवन में आनन्द का वसंत अवश्य खिलता है। धर्मसभा में तपस्यार्थियों का चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों ने सम्मान किया।