एमकेएम में गणेशीलालजी महाराज की 145वीं जन्म जयंती मनाई गई
वर्धमान स्थानकवासी जैन महासंघ तमिलनाडु के तत्वावधान एवं श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी के सान्निध्य में गुरुवार को कर्नाटक गजकेसरी गणेशीलालजी महाराज की 145वीं जन्म जयंती एकाशन व दया दिवस के रूप में मनाई गई।
इस मौके पर युवाचार्य प्रवर ने कहा कि महापुरुष अपने आप में, अपनी साधना और सामर्थ्य से प्रत्येक भव्य जीवों का आलंबन बनते हैं। आज कर्नाटक गजकेसरी, घोर तपस्वी के जन्म दिवस का अवसर है। एक ऐसा बालक जो बिलाड़ा के ललवानी परिवार में जन्मा, जिसे जन्म के पश्चात ही संसार के उन थपेड़ों का सामना करना पड़ा जिन्हें आप भी महसूस करते हैं। जो उपेक्षा का दुःख होता है, उसे उसने झेला।
उन्होंने कहा आप जहां हो, वहां कितनी निष्ठा से जुड़े हो, वह मायने रखता है। वे हमेशा कार्य के प्रति निष्ठावान थे। विवाह का प्रस्ताव भी आया। जो-जो चीज जीवन में महत्वपूर्ण है, उसे बढ़ाने का प्रयास रहता ही है लेकिन उन्होंने सामने से इंकार कर दिया। उन्होंने अपने स्वाभिमान, उसूलों के साथ समझौता नहीं किया।
वे साधना की ओर आकर्षित हुए। वे गुरु के संपर्क में आए और दीक्षा ग्रहण की। जहां वे बंधन के बंधन में बंधने वाले थे, वहीं मुक्ति का मार्ग मिला। यह एक अभूतपूर्व संयोग था कि आनंद ऋषिजी महाराज व गणेशलालजी महाराज की दीक्षा एक ही दिन हुई। वे श्रमण संघ में सूरज और चांद की उपमा से जाने जाते थे।
उन्होंने कहा गणेशीलालजी महाराज घोर तपस्वी थे। वे साधना में एकांकी रहे। दीक्षित होने के बाद एकांतर तप शुरू कर दिया और अंत तक करते रहे। उनमें भीतर में रही हुई करुणा भरी हुई थी, चाहे वह गायों के लिए हो या साधर्मिक के लिए। उनके भीतर की दया अद्भुत थी।
वे राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि दक्षिण क्षेत्रों में ऐसे दीप स्तंभ थे कि उन्होंने जैनत्व का साहस भरा। उनकी वाणी में प्रभाव था कि उन्होंने जैनत्व की सही पहचान कराई। आज आपको कट्टरता को अपनाने के लिए कई महापुरुष मिल जाएंगे। अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए दूसरों पर अंगुली उठानी पड़ती है। ऐसी मानसिकता उनके विषय नहीं थे।
उन्होंने कहा वे तप और स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक थे। उन्होंने जैनत्व की ज्योति प्रकट की। वे आचार्य नहीं बने लेकिन उनका व्यक्तित्व उच्च कोटि का था कि उन्होंने अपनी साधना, तप के प्रभाव से अनेकों को पंथ से नहीं, धर्म, सत्य से जोड़ा। उनकी महानता उनके आचरण, तप, साधना से झलकती थी। वे इतने तेजस्वी, प्रखर थे कि छोटी मोटी बीमारी ऐसे ही खत्म हो जाती थी।
जहां साफ, शुद्ध मन नहीं हो, वहां आचरण में कमी आती है लेकिन लोगों के मन में उनके प्रति आस्था, श्रद्धा कूट कूट कर भरी थी। महापुरुष वे है जो हर पल याद आते हैं। आज उनकी जयंती पर संकल्प करना है कि हम धर्म के प्रति आस्था बढ़ाएं। हमारा कर्तव्य है कि उनकी सत्य की विरासत को आगे बढ़ाएं। जीवन में तप से हर प्रकार की तकलीफें दूर होती है, उससे हम जुड़ें। उन्होंने सादगी का संदेश दिया। वह हमें हमारे जीवन में धारण करनी है। आप उस महापुरुष के प्रति श्रद्धा रखते हुए उनके सूत्रों को अपनाएं।
इस अवसर पर वर्धमान स्थानकवासी जैन महिला महासंघ तमिलनाडु की सदस्याओं ने एक सुर में भाव भरी गीतिका प्रस्तुत की। महासंघ के मंत्री धर्मीचंद सिंघवी ने कहा कि आज हम गणेशीलालजी महाराज की जन्म जयंती मना रहे हैं। वे सादगी, विनय, करुणा, दया की प्रतिमूर्ति थे। जीवदया उनका प्रमुख लक्ष्य था।
उन्होंने महासंघ के अध्यक्ष सुरेश लुनावत के नेतृत्व में जीवदया के तहत एकत्रित राशि को विभिन्न गौशालाओं को अनुदान देने की घोषणा की। उन्होंने कहा हमारी कोशिश रहेगी कि सभी गौशालाओं को राशि पहुंचे। उन्होंने बताया कि शनिवार प्रातः नेचुरोपैथी पर एक कार्यशाला आयोजित की जाएगी। इस दौरान मुम्बई से मेवाड़ युवा संघ के सदस्य उपस्थित हुए और आगामी होली चातुर्मास की विनंती की। इसके अलावा अहमदनगर (अहिल्यानगर), सूरत, बैंगलुरू, रायपुर, चाकण, पूना, जामनेर आदि क्षेत्रों से गुरुभक्तगण युवाचार्यश्री के दर्शनार्थ व वंदनार्थ पहुंचे। राकेश विनायकिया ने तेरे भक्तों में लिखा दे मेरी हाजरी.. गीत की प्रस्तुति दी।