चेन्नई. रायपुरम स्थित सुमतिनाथ भवन में विराजित आचार्य मुक्तिप्रभ सूरीश्वर की निश्रा में विनीतप्रभ सूरीश्वर ने कहा जिस प्रकार एक दिन बुखार आने से कई माह की शक्ति क्षीण हो जाती है, उसी प्रकार एक बार क्रोध करने से कई वर्ष का तप और साधना नष्ट हो जाती है।
पांच मिनट क्रोध करने में जिनती शक्ति क्षीण होती है उतनी शक्ति आठ घंटे श्रम करने से भी क्षीण नहीं होती। आचार्य ने कहा हमारी रुचि-इच्छा स्वार्थ स्वाभिमान के विरुद्ध कोई अप्रिय घटना होती है तो मन उसका विरोध करता है।
उस व्यवहार के प्रति विद्रोही बन जाता है। फिर हृदय की बातें होंठों पर तिलमिलाहट के साथ आती हैं। शब्द के साथ शरीर के अन्य अवयव भी उत्तेजित और लाल हो जाते हैं।
इस विरोध और विद्रोह की परिणति एवं अभिव्यक्ति ही क्रोध है। क्रोध पैदा होता है दुर्वचन के कारण, स्वार्थ पूर्ति नहीं होने के कारण, भ्रम के कारण, रुचि या विचार भेद के कारण।