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क्षमा इंसान का आंतरिक गुण है: डॉ. श्री रुचिकाश्री जी महाराज

क्षमा इंसान का आंतरिक गुण है: डॉ. श्री रुचिकाश्री जी महाराज

श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी बावीस संप्रदाय जैन संघ ट्रस्ट, गणेश बाग श्री संघ के तत्वावधान में एवं शासन गौरव महासाध्वी पूज्या डॉ. श्री रुचिकाश्री जी महाराज, पूज्या श्री पुनितज्योति जी महाराज, पूज्या श्री जिनाज्ञाश्री जी महाराज के पावन सानिध्य में शनिवार प्रातः दिनांक 11 सितम्बर 2021 को श्री गुरु गणेश जैन स्थानक, गणेश बाग में पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के अष्टम दिन संवत्सरी के अवसर पर सूत्र वाचन, प्रवचन, आलोचना, धर्माराधना प्रतियोगिताएं एवं प्रतिक्रमण आयोजित किया गया।

पर्वाधिराज महापर्व पर्युषण के अष्टम दिन के अवसर पर महासाध्वी पूज्या डॉ. श्री रुचिकाश्री जी महाराज ने श्री अंतकृतदशांग सूत्र का वाचन किया। अपना आज का विशेष प्रवचन – सरोवर छलके क्षमा विषय पर फ़रमाया कि क्षमा इंसान का आंतरिक गुण है। क्षमा हृदय की गहराई से उठने वाला भाव है। किसी को सॉरी बोलकर निकल गए या मन ही मन अपनी गलती महसूस कर चुप रह गए, यह सही तरीके से क्षमा मांगना नहीं हुआ। न ही किसी को मैंने तुम्हे माफ़ किया कहकर मन में उसकी प्रति द्वेष या क्रोध को रोक लेना भी क्षमा नहीं है। आप श्री ने बताया कि क्षमा वीरों का आभूषण है। क्षमा मांगने से अहंकार ढलता और गलता है, तो क्षमा करने से सुसंस्कार पलता और चलता है। क्षमा शीलवान का शस्त्र और अहिंसक का अस्त्र है। क्षमा, प्रेम का परिधान है। क्षमा, विश्वास का विधान है। क्षमा, सृजन का सम्मान है। क्षमा, नफरत का निदान है। क्षमा, पवित्रता का प्रवाह है। क्षमा का धर्म आधार होता है। क्रोध सदैव ही सभी के लिए अहितकारी है और क्षमा सदा, सर्वत्र सभी के लिए हितकारी होती है। जिसके मन में पश्चाताप का भाव न हो, उसे क्षमा कर देना पानी पर लकीर खींचने की तरह निरर्थक है। अपने आपको क्षमा कर देना साहस का सर्वोच्च कार्य है। उन सब कार्यों के लिए, जो मैं नहीं कर सकता था लेकिन मैंने किया। विभाव से स्वभाव में आने का, मिथ्यात्व से सम्यक्त्व में आने का – तब उसके भीतर जो भाव आता है – वह है क्षमापना। क्षमा से मनुष्य अपाहिज और पंगु नहीं होता अपितु अपनी वीरता व महानता को ही प्रकट करता है।

संगम को क्षमा करके प्रभु वीर कायर नहीं, महावीर कहलाये। भगवान महावीर ने क्षमा यानी समता का जीवन जीया। वे चाहे कैसी भी परिस्थिति आई हो, सभी परिस्थितियों में सम रहे। भगवान महावीर ने कहा है – खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्तिमे सव्व भुएस्‌ वैरं ममझं न केणई। – अर्थात सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा बैर नहीं है। यह वाक्य परंपरागत जरूर है, मगर विशेष आशय रखता है। इसके अनुसार क्षमा मांगने से ज्यादा जरूरी क्षमा करना है। साध्वीजी ने कहा कि आज संवत्सरी पर्युषण का अंतिम दिन है। आप श्री ने प्रेरणा दी कि इस दिन प्रत्येक श्रावक श्राविका संवत्सरी प्रतिक्रमण करें जिससे समस्त 84 लाख जीवयोनि से क्षमा की जाती है। इसमें वर्ष भर में किए गए पापों का प्रायश्चित किया जाता है। इस दिन क्षमा याचना की जाती है। क्षमा याचना का यह पर्व पर्युषण में महत्वपूर्ण है।

साध्वी श्री जिनाज्ञाश्री जी महाराज अपने मंगलवाणी में फ़रमाया कि पर्युषण में सात दिन के प्रवचन, सामायिक, तप, ध्यान, दान, आलोचना आदि से क्षमापना के मार्ग की तरफ हर किसी को अग्रसर करते है। जिनशासन में क्षमा से बढ़कर कोई भाव नहीं है और जिनशासन का यह भाव हर प्राणी मात्र के जीवन को सफल और सुंदर बना सकता है।

धर्म सभा का संचालन करते हुए गणेश बाग श्री संघ के सदस्य सुनील सांखला जैन ने बताया कि आज संवत्सरी महापर्व के अवसर पर बड़ी संख्या में एक उपवास, तेला, आठ एवं नौ तपस्वियों ने पच्चखाण लिए एवं तपस्वियों का अनुमोदना अभिनन्दन किया गया। सांखला ने कहा कि तपस्या से कटे कर्म अति भारी। तप के आगे नतमस्तक दुनिया सारी। तप वह जल है जो समस्त आत्म मेल को धो डालता है। आज क्षमापना तो पर्वाधिराज के प्राण समान हैं। आपने साध्वीजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित किया की उनके मार्गदर्शन में पर्युषण महापर्व में सभी धर्माराधना कर सके एवं सभी श्रद्धालुओं के धर्माराधना तपाराधना के सुख सकता पूछते हुए उत्तम स्वास्थ्य की मंगलकामना की। श्रद्धालुओं ने दिल खोलकर जीव दया में दान दिए। 8 दिन से चल रहा नवकार महामंत्र जाप का समापन किया गया।

प्रवचन के पश्चात साध्वी श्री जिनाज्ञाश्री जी महाराज द्वारा आलोचना करवाया एवं कौन बनेगा भाग्यशाली प्रतियोगिता आयोजित किया गया और बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं ने भाग लिया एवं विजेताओं को श्री संघ की और से पुरुस्कृत किया गया। महापर्व पर्युषण अष्टम दिन के अवसर पर गणेश बाग में श्रद्धालुओं का सैलाब था। धर्म सभा का संचालन एवं स्वागत गणेश बाग श्री संघ सदस्य सुनील सांखला जैन ने किया। इस अवसर श्री संघ अध्यक्ष लालचंद मांडोत सहित अनेक वक्ताओं ने अपनी भाव रखे एवं गीतिका प्रस्तुति की। डॉ. श्री रुचिकाश्री जी महाराज ने मंगलपाठ फ़रमाया।

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