चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा कि वर्तमान में मनुष्य अपने कषायों के माध्यम से गलत मार्गो का निर्माण कर रहा है। लेकिन जब तक आत्मा कषायों से मुक्त नही होगी तब तक मानव भव को मुक्ति नही मिल सकती है। कषाय में फंस कर लोग छोटी छोटी बातों पर भी क्रोध करते है जिससे खुद का ही नुकसान होता है।
याद रहे कि क्रोध को त्याग कर जीवन का कल्याण किया जा साकता है। उन्होंने कहा कि जब तक कषाय की अग्नि से क्रोध को शांत नहीं किया जाएगा तब तक आत्मा का बोध नहीं हो सकता है। जब कोई काम मन के अनुरूप नही होता तब क्रोध आता है। गोरा होने के बाद भी लोग क्रोध में लाल पिले हो जाते है। ऐसा करके मनुष्य अपने बनते हुवे मार्गो को भी नष्ट कर लेता है।
क्रोध मनुष्य के कषायों की गंदगी से आती है। इसलिए क्रोध को समाप्त करने के लिए कषायों से दूर करने की जरूरत है। उहोंने कहा कि जिस प्रकार से कीचड़ से भरे तालाब में पत्थर डालने से गंदा छिटटा खुद पर आता है। वैसे ही क्रोध का असर भी क्रोध करने वालो पर ही होता है। इससे किसी और का बुरा नही किया जा सकता है बल्कि स्वय का ही बुरा होता है।
मानव भव मिला है तो चार बात सुनकर भी शांत रहने का स्वभाव डालना चाहिए। उन्होंने कहा कि बुखार सही होने के बाद दश दिन तक कमजोरी रहती है, पर 15 मिनट तक क्रोध जीवन भर के लिए कमजोर करता है।
क्रोध कि वजह से रिस्ते नाते टूट रहे है अपने दूर हो रहे है। संतोष रखने वालों को उनके भाग्य का मिलेगा और रिस्ते भी नही टूटेंगे। जीवन मे आगे जाना है तो कषायों को दूर कर क्रोध पर नियंत्रण करें।