चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में साध्वी धर्मलता ने कहा कि क्रोध और मान से द्वेष व माया तथा लोभ से राग की उत्पत्ति होती है। राग और द्वेष जुड़वा भाई हैं।
राग व्यक्ति को मूर्छित करता है तो द्वेष व्यथित करता है। जिस इंसान के अंदर से राग चला गया तो द्वेष स्वत: ही दूर हो जाएगा।
भगवान महावीर की अंतिम देशना का विशेष महत्व बताते हुए उन्होंने कहा पिता अपने जीवन के अंतिम समय जो सीख देता है, वह पुत्र के हृदय में अंकित हो जाती है, उसी प्रकार धर्म पिता प्रभु महावीर ने हमारे हित के लिए उत्तराध्ययन के माध्यम से जो शिक्षा दी है वह अमूल्य है।
वह अंतिम समय तक हृदय पर अंकित रखने जैसी है। देह में रहकर जिनकी दशा देहातीत है उन ज्ञानी पुरुषों की भक्ति करनी चाहिए।