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ज्ञान वाणी

क्रोध रूपी अग्नि जलाती है स्व और पर को: जयधुरंधर मुनि

चेन्नई. सईदापेट बाजार रोड जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा की क्रोध, मान, माया, लोभ रूपी कषाय के कारण ही संसार का परिभ्रमण बढ़ता है। कर्म वृक्ष का सींचन कषायों से होता है। क्रोध रूपी आग के कारण मनुष्य स्वयं भी जलता है और दूसरों को भी जलाता है।

क्रोधी व्यक्ति की आंखें लाल हो जाती हंै और उसके हृदय की धडक़न तेज हो जाती है। रक्तचाप के बढऩे का एक कारण क्रोध भी है। गुस्से में व्यक्ति का भान खत्म हो जाता है। पानी गर्म होता है तो भी आग बुझा देता है लेकिन इंसान गर्म होता है तो आग लगा देता है।

पेट्रोल के समान क्रोध को छोटी सी चिंगारी से भी डर रहता है जबकि पानी को किसी आग से भी भय नहीं होता है। क्रोध के उत्पन्न होने के अनेक निमित्त हो सकते हैं। किसी क्षेत्र या मकान में प्रवेश करते ही व्यक्ति आग बबूला हो जाता है।

शरीर में व्याधि भी रोगी को क्रोधी बना सकती है। किसी उपकरण के खो जाने या टूट जाने से मनुष्य को क्रोधावेश में चला जाता है। क्रोध करने से शरीर का रक्त जहर तुल्य बन जाता है। निमित्त चाहे कितने भी उपस्थित हो, लेकिन व्यक्ति को क्रोध नहीं करना चाहिए।

क्रोध प्रीती का नाश करता है। क्रोध के कारण मित्र भी शत्रु बन जाता है। क्रोध वैर की गांठ बांध देता है। चड़चड़ करने वाली गाड़ी और चिड़चिड़ करने वाला व्यक्ति किसी को भी पसंद नहीं आते। सिंह जैसा क्रोधी जानवर भी निष्कासित किया जाता है।

क्रोध रूपी विभाव दशा में रमन करने के कारण ही जीवन में विकृतियां और विपत्तियां आती है। आज मनुष्य की भ्रांति है कि गुस्सा किए बिना काम नहीं बन सकता है, लेकिन जब गुस्सा करने पर भी काम नहीं बनता है, तो व्यक्ति ओर अधिक गुस्सा करने लग जाता है।

क्रोध दुर्गतियों की ओर ले जाता है। क्रोध बड़ा ही दुखदाई होता है। क्रोध के परिणामों को जानने वाला ही, उस से बच सकता है। मुनिगण बुधवार तक सईदापेट बाजार में ही विराजेंगे।

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