चेन्नई. कीलपॉक स्थित ऋषभ भवन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा जिनवाणी श्रवण एवं आगम के पठन-पाठन से साधक के ज्ञान चक्षु जाग्रत हो जाते हैं। ज्ञान चक्षु से ही वस्तु का सम्यक स्वरूप जाना जा सकता है।
सामान्य चक्षु से देखी हुई चीज भी परिस्थितिनुसार असत्य सिद्ध हो जाती है जबकि आगम चक्षु द्वारा प्राप्त ज्ञान त्रिकाल सत्य होता है। चक्षु विहीन अंधा व्यक्ति तो एक जन्म तक दुख पाता है पर ज्ञान चक्षु के अभाव में व्यक्ति भव -भव भटकता है। हर साधक को तमसो मा ज्योतिर्गमय सूत्र को आत्मसात करते हुए अज्ञान अंधकार से ऊपर उठकर ज्ञान रूपी प्रकाश में प्रवेश करना चाहिए।
उन्होंने चार प्रकार के अंधों का वर्णन करते हुए कहा कुछ जीव अपने दुर्गुणों के कारण आंखें होते हुए भी विवेक नेत्र बंद होने से अंधा तुल्य होते हैं। क्रोध में व्यक्ति अंधा हो जाता है जिससे उसे अपने हिताहित का भान नहीं रहता क्रोधांध व्यक्ति पग-पग पर क्लेश एवं विषाद को प्राप्त होता है।
क्रोध के समय यदि बोध भी दिया जाए तो भी वह उसे ग्रहण नहीं कर पाता क्योंकि क्रोध बोध को मिटा देता है एवं बुद्धि को अवरुद्ध कर देता है। इसके कारण उससे बाद में पछताना पड़ता है। क्रोध में किए गए निर्णय अक्सर गलत ही साबित होते हैं।
क्रोध के कारण अनेक लोगों का जीवन बर्बाद हो जाता है। संचालन शांतिलाल कोठारी ने किया। मुनिवृंद मंगलवार तक यहीं विराजेंगे।