किलपाॅक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ में चातुर्मासार्थ विराजित गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी महाराज के शिष्य मुनि गोयमप्रभ विजयजी ने प्रवचन में कहा साधु जीवन का भाव है उपशम यानी क्षमा। क्षमा यानी जिसके साथ आपने गलत व्यवहार किया, उससे माफी मांग लेना। इसी तरह जो आपसे माफी मांगने आ रहे हैं, उन्हें भी माफ कर देना। ऐसा करने से अंतर्मन के कषाय धुल जाते हैं। क्षमा लाने के लिए क्रोध का त्याग करना होगा। क्षमा के पांच प्रकार होते हैं अपकार क्षमा, उपकार क्षमा, विपाक क्षमा, वचन क्षमा और स्वभाव क्षमा। अपकार क्षमा यानी डर के कारण रखने वाली क्षमा। उपकार क्षमा यानी उपकारी के उपकार को याद करके क्षमा दे देना, वह उपकार क्षमा है।
हर जीव के परोक्ष या प्रत्यक्ष उपकार रहे हुए हैं, चाहे वह जन्मदाता माता-पिता हो या जीवनदाता, ये सब उपकारी हैं। विपाक क्षमा यानी क्रोध के परिणाम जानकर क्षमा देना। उन्होंने कहा क्रोध के दुष्परिणाम से जीवन में अशांति और मरण में असमाधि होती है। क्रोध की अवस्था में शरीर के धातु विषम बन जाते हैं। क्रोध से पाचन तंत्र बिगड़ता है। क्रोध से रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है, शरीर की ऊर्जा का नाश होता है। क्रोध के पीछे वैर- भाव की परंपरा चलती है। क्रोध के कारण सौंदर्य का नाश होता है, आपसी संबंध बिगड़ते हैं।
मुनि ने कहा क्रोध के कारण लोकप्रियता का नाश होता है और अपयश नामकर्म का उदय होता है। क्रोध करने से हर क्षेत्र में निष्फलता मिलती है। क्रोध के कारण अपात्रता खड़ी हो जाती है। क्रोध करने से कर्मबंध होते है। क्रोध जीवन की प्रगति का बहुत बड़ा अवरोधक है। उन्होंने कहा मन को वश में करना तो अपने हाथ में है, जहां तक हो सके, क्रोध से दूर रहना चाहिए।
लोग कहते हैं निमित्त मिलने से क्रोध आता है। वास्तव में निमित्त से क्रोध नहीं आता है। क्रोध हमारे अंदर रहा हुआ है, तभी आता है। यह हमारे अनादि काल के संस्कार है। महापुरुषों के वचन याद करके क्षमा- भाव रखना वचन क्षमा है। परमात्मा ने कहा है क्रोध हमारी आत्मा के लिए नुकसान कारक है, इन वचनों को हमेशा याद रखकर ह्रदय में क्षमा- भाव रखना चाहिए। उन्होंने कहा आत्मा का स्वभाव क्षमा है, इसलिए उसे स्वभाव क्षमा कहते है।