चेन्नई. धर्म, समाज, देश और राष्ट्र में जब भी रीति-रिवाज, परंपराएं प्रारंभ होती हैं तो उनके साथ कोई शिक्षा, सिद्धांत या प्रेरणादायक बात जुड़ी होती है परंतु समय के प्रवाह के साथ-साथ वह शिक्षा तो पीछे छूट जाती है, बस लकीरें रह जाती हैं, जिन्हें लोग पीटते रहते हैं। जब-जब धर्म, समाज, देश और राष्ट्र में पंथ-परंपराओं के नाम पर अंध श्रद्धा, अंधविश्वास जैसी कुरीतियां बढ़ती हैं तब-तब कोई युग पुरुष उनमें नया मोड़ लाते हैं। मोड़ लाने इस प्रक्रिया को क्रांति कहा जाता है। यह विचार ओजस्वी प्रवचनकार डॉ वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट के प्रांगण में आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा ‘गंगा’ जब गोमुख से निकलती है तो पवित्र – पावन होती है और हरिद्वार तक आते-आते लोग उसमें अस्थियां, फूल, घर का पुराना धूप दीप पूजा सामग्री डाल-डाल कर क्या हाल कर देते हैं, आप हमसे अधिक जानते हैं।
ऐसे ही अधिक दुर्घटनाएं धर्म सम्प्रदायों के नाम पर होती हैं। जो समय के साथ- साथ इतनी अधिक दूषित हो जाती हैं कि – धर्म भी उनके नाम से कांप जाए।
फलत: कोई महापुरुष अवतरित होते हैं जो समाज, धर्म, देश और राष्ट्र में क्रांति लाते हैं और इसी कारण उन्हें ‘क्रांतिकारी’ कहा जाता है। ऐसे ही क्रांतिकारी संत थे मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.। जिन्होंने जीवों की रक्षा के लिए 3 दिन तक बलि की वेदी पर खुद को समर्पित रखा। तीन दिन तक उन्होंने अन्न जल भी ग्रहण नहीं किया। जब बलि किए जाने वाले पशुओं को अभयदान मिला सरकार द्वारा और धर्म संस्था के अधिकारियों द्वारा तब कहीं जाकर उन्होंने आहार ग्रहण किया। इसी प्रकार हमारे लोकमान्य संत शेरे राजस्थान रूप चन्दजी ने भी अनेक स्थानों पर बलि प्रथा बंद करवाई तथा गौशालाएं बकरा शालाएं एवं कबूतरशालाएं खुलवाई, जहां आज भी हजारों-लाखों बेजुबान मासूम पशु-पक्षी अभयदान प्राप्त कर सुख-शांतिमय जीवन बिता रहे हैं। ऐसी दिव्य विभूतियों की जन्म जयंति मनाना हम सभी के लिए सौभाग्य की बात है। भले ही उन जैसे क्रांतिकारी संत हर कोई नहीं बन सकता परंतु उनकी शिक्षाओं का आचरण हमारे जीवन में हो जाए तो हमारे जीवन में अवश्य ही क्रांति घटित हो सकती है।