चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि प्रेम सदा अकारण है इसलिए समाज से कभी किसी से अपेक्षा नहीं रखें। प्रेम सौदा नहीं है, वह लेनदेन के व्यवसाय जगत से बाहर है और यही प्रेम का सौंदर्य है। आप सबने पलकों पर बैठाकर रखा।
सबने सेवाभाव से भक्ति की। महिला वर्ग ने हृदय से अपना कत्र्तव्य निभाया, युवकों ने तहेदिल से पूजा की, जो कि प्रशंसनीय है। जन्मों की खोज के बाद ही मंदिर का मार्ग मिलता है। कई बार मार्ग पाकर भी हम उसे खो देती है और फिर बाद पछताते हैं। मेरा समय पूरा हुआ, अब मैं जा रहा हूं। आंगतुक मुनियों की सेवा करना।
संसार में प्रलोभन बहुत है। विगत संस्कार भी उदित होंगे। सत्कार्य से रोकेंगे। आलस्य भी घेरेगा, मन भी विकल्प सुझाएगा। इन सबसे सावधान रहना। समय के पास रिवर्स गियर और प्रेम नहीं है। तुम्हें ही अपना मार्ग चुनना है और बढऩा है।
जिस द्वार को जन्मों में पाया उसे मत खो देना। अच्छे समय का सदुपयोग करना। धर्म से बढ़कर कोई चीज नहीं है। आचार्य सोमवार सुबह सुंदेशा मूथा भवन से बेंगलूरु के लिए प्रस्थान करेंगे।