किलपॉक स्थित एससी शाह भवन में विराजित उपाध्यायश्री युगप्रभविजयजी महाराज के सानिध्य में शुक्रवार को तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के च्यवन कल्याणक के उपलक्ष में भव्य स्नात्रपूजा का आयोजन हुआ। उपाध्यायश्री के स्नात्रपूजा में रहे हुए रहस्य और भावार्थ को समझाने के साथ स्नात्रपूजा का आरंभ हुआ। इस मौके पर उपाध्याय श्री ने कहा कि आज के दिन मुनिसुव्रत स्वामी परमात्मा देवलोक से मुक्त हुए। जब वे गर्भ में प्रवेश करते हैं, वह च्यवन कहलाता है। परमात्मा का जन्म महा मंगलकारी है, क्योंकि परमात्मा तारणहार है। कल्य यानी सुख, जो सुख देने वाले होते हैं, इसलिए उनका कल्याणक मनाते हैं।
उन्होंने बताया कि परमात्मा का जन्म महोत्सव मनाने के लिए असंख्य देव एकजुट होकर मेरु पर्वत पर इकट्ठे होते हैं। हमें हृदय के भाव से यह समझकर आगे बढ़ना है कि साक्षात् परमात्मा सामने हैं। हमें भावों से पूजन के साथ जुड़ना है। हम कुसुमांजलि करते हुए परमात्मा से निवेदन करते हैं कि मुझे भी मानवभव मिला है और अब सिद्धपद प्राप्त हो। यहां पांच परमात्मा शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी एवं आदिनाथ की स्तुति की जाती है। शांतिनाथ भगवान के शासनकाल से हमारा शासन अखंड चल रहा है, इसलिए उनकी स्तुति की जाती है। स्नात्रपूजन मुखकोष लगाकर ही किया जाना चाहिए। पुष्प में पांच विशेषताएं रस, रूप, गंधर्व, स्पर्श और शब्द का माधुर्य होता है, जो दूसरों को प्रसन्नता देने वाले हैं, इसलिए परमात्मा को पुष्प अर्पण किए जाता है। तीन प्रदक्षिणा देने के साथ यह भावना करनी है कि हमें भी आपके जैसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र की रत्नत्रयी मिले। चैत्यवंदन में जयवीराय सूत्र में परमात्मा से तेरह प्रकार की प्रार्थनाएं की है जिनमें छः लौकिक व सात लोकोत्तर बताई गई है। तीनों काल के अनंत तीर्थंकर परमात्मा की भक्ति का लाभ हमारे तक सीमित नहीं रहे। ऐसी भक्ति सकल संघ की उन्नति का कारक बने।
उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति की दूषित भावना से धर्म कभी दुषित नहीं होता है। परमात्मा के संग की सम्यक्तव की भक्ति से ही चढ़ते परिणाम के कारण सभी व्यक्तियों की निर्मलता की निशानी है। परमात्मा सर्वशक्तिमान है। हमें प्रार्थना करनी है कि आपके जैसी शक्ति नहीं, लेकिन भावना तो हमें भी मिले। परमात्मा का अवतरण भरत क्षेत्र और एरावत क्षेत्र सहित पंद्रह क्षेत्रों में होता है। अनार्य देश व युगलिककाल में जन्म नहीं होता है। हमें परमात्मा की पुण्यभूमि पर रहने का अवसर मिला है। माता के चौदह स्वप्न की विवेचना करते हुए उन्होंने बताया कि उनमें हाथी साहस का प्रतीक है। जो कार्य आरंभ किया है उसे पूर्ण करने के लिए वृषभ। साधना व सद्कार्य के क्षेत्र में कभी डरे नहीं इसलिए केशरी सिंह। हमारी धैर्यता, पराक्रम दूसरों की सुरक्षा करने में उपयोगी होना चाहिए। तीर्थंकर पुत्र की प्राप्ति होने पर माता को आनंद होता है, शुभ भाव जगते हैं।
उन्होंने कहा कि भक्ति के अंदर बुद्धि का उपयोग नहीं करना है तभी सच्ची भक्ति हो सकती है। इसीलिए इंद्र ने वृषभ का रूप धारण कर भक्ति की थी। पंचामृत से पक्षाल करना चाहिए। इसमें 90 प्रतिशत पानी और 10 प्रतिशत अन्य द्रव्य उपयोग में लाकर जयणा के पालन का ध्यान रखना चाहिए। आरती करते समय यह भाव आना चाहिए कि हमारा ज्ञान दीपक प्रगट हो। हमें शुभ कार्य और तपस्या की अनुमोदना तीर्थ स्थान पर जाकर करनी चाहिए, अन्य अशुभ स्थानों में जाकर नहीं।