चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न ने ‘कस्तूरी प्रकरण’ के बारे में बताया कि पुत्र का जन्म होने, महादेवी द्वारा सिद्धि प्राप्त होने, राज्य पद मिलने, अखूट लक्ष्मी प्राप्त होने, स्वर्ण सिद्धि होने व अत्यंत निकटतम संबंधियों के मिलने पर जितनी खुशी मानव को होती है, उतनी ही खुशी दानवीर पुरुष को याचक द्वारा कहे गए ‘देही'(मुझे दो) शब्द के सुनने मात्र से हो जाती है।
काव्यकुशल व्यक्ति कविता बनाने में खुश रहता है, गीतकार गीत गाने में, कथारसिक को कथा करने में, विचारवान प्राणी चिंतन करने में खुश रहता है लेकिन इन सबमें सर्वश्रेष्ठ दान है जो एक ही समय में तीनों जगत को खुश कर देता है। देने वाला नदी की तरह मीठा, लेने वाला सागर की तरह खारा व मात्र इक_ा करने वाला नाले की तरह गंदा हो जाता है, अत: नदी की तरह देते रहेंगे तो हमेशा मीठे बने रहेंगे।
कर्ण ने स्वर्ण और द्रौपदी ने अपने वस्त्रों का दान दिया, परिणाम स्वरूप कर्ण को अनंत यश और द्रौपदी को चीरहरण के समय वस्त्रों की प्राप्ति हुई। जो उन्होंने दिया वह कई गुना बनकर प्राप्त हुआ। जो व्यक्ति जैसा देता है, वह वैसा ही पाता है। किया हुआ दान, कर्म एवं अभ्यास कभी निष्फल नहीं जाता। वह कभी न कभी अवश्य फल देता है। 5 अगस्त को मुनि के सान्निध्य में राजेन्द्र भवन में सवेरे 9.15 बजे से माता-पिता की महिमा व गरिमा को दर्शाने वाला ‘मातृ-पितृ वंदना’ कार्यक्रम होगा।