सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद
*प्रवर्तक पूज्य श्री प्रकाश मुनि जी मा.सा*-संसार में दुःख के दो कारण बताये है, *आशा और स्वच्छन्दता* दुःखी क्यो हे? आशा के कारण सारे दुनिया के काम “करने की आशा.. कितना भी प्राप्त हो.संतुष्टि नहीं। भोग की कितनी भी सामग्री इकट्ठी कर लो संतुष्टि नहीं होती। *द्रष्टान्त*- सगत चक्रवर्ती नई विशेषता के लिये 7वे खण्ड को जीत को गये। 6 विभाग में भरत खंड- बटा। वासुदेव 3 खण्ड के अधिपति होते है, ऊपर की ओर चुलहिम्मत पर्वत कोई पार नहीं कर सकता- नीचे लवण समुद्र 500 योजन तक का होता है। 25000 देव सेवा करते है T मुलतह नाम की आशा है इसके पीछे मनुष्य नरक में चला जाता है।
चक्रवर्ती 3 खण्ड के बाद चौथे खण्ड में पर्वत हस्ताक्षर करते हे, ऋषभकुट पर्वत पर भरतचक्रवती राजा बहुंचते है, कामीणी पत्थर लिखने के लिये उठाया लिखने की जगह नहीं। यह विधान *अभिमान तोड़ने के लिये*, भरत चक्रवर्ती को वही से *बोध* हुआ मेरे पहले इतने चक्रवर्तिवी हो गये। विधान पुरा किया, काकाणी ले एक नाम मिटाया उसकी जगह अपना नाम लिखा।
*वही से दूसरा बोध* हुआ कि नाम नहीं रहेगा… यही *मोह हे* भोग छोडना सरल है पर *नाम के लिये मिट जाते है।* आत्मा निर्लिप्त हे, कर्मो से लिप्त नहीं है जग जाये तो *मोह छोड़* देती है, मन की उलझन से बाहर निकले विजय हो जाती है *आत्मा का कोई नाम नहीं।* शरीर का नाम हे! पुद्गल से मोह हे, वचन रुपी पुङ्गल जिसके द्वारा नाम लिया जाता हे यह लोक व्यापी हे शब्द ब्रम्हांड में चक्कर लगाकर वापस आ जाता है। कितनी – ताकत आकाश लोक से टकराकर वापस आते है *तो सुनते है।* पुगल की शक्ति घातक है उससे *शक्तिशाली आत्मा* है। 52 सो भेसे का बल एक हाथी में होता है, 500 हाथी का बल 1 सिंह में होता है 500 सिंह का बल अष्टांग पक्षी में होता है ,10 लाख पक्षी का बल एक बलदेव में होता हो दो बल देव का बल। वासुदेव में होता है
करोड़ इंद्र तिर्थंकर की एक इंगली नीचे नहीं कर सकते है
वही बल अपने में है आत्मा में हे शक्ति सोई हुई हे जागृत हो जाती है तो एक झटके में मोह छोड़देती है।
*दृश्टान्त* -शालीभद्र राजा की आत्मा जागी ओर एक झटके में सब छोड़ देते है । इतनी रिद्धि सम्पदा एक क्षण में छोड़ देते है। उनके जमाई धन्ना सेठ जो किया *नाम के* लिये नहीं किया।
*जो पुण्याई से कमाई लक्ष्मी है उसका सदुपयोग करने वाला दानी ।*
*जोड़ गया सिर फोड़ गया,* धन के लिये भाई-2 लड़ रहे। शालीभद्र की आत्मा ने थोड़ा सा दिया था खीर खुद की कमाई की नहीं करुणा का दान में लिया समान से बनाई ..बंदे ने माँ से भी नहीं कहा की महाराज आये थे। *दान देने के बाद महात्वकांक्षा नाम की।* धन्ना सेठ ने सारी जिंदगी दान पुण्य किया।
कभी लक्ष्य तो बनाओ – *कुछ छोडो*, किसके लिये इकट्ठा कर रहे हो? आने वाली पुण्यवान आत्मा को सब मिल रहा हे। सारा रेडिमेड मिल रहा हे। थे तो हेम्काल ये किसके लिये -? लूटाओ अपने हाथ से दो। दे के भुल जाओ . पुड्गल है छोडो… हम पुदगल पर आसक्त है। आशाओ में इंसान जी रहा है, महत्वाकांक्षा नाम की ।
परमात्मा कहते है कि परिग्रह कम करो पर आप इसको बढ़ाते है। आत्मा अनंत शक्ति से सम्पन्न है यह जगाती है तो मोह छूटता है
– इन लालसाओं , आशा के साथ कहा जाना है? मोक्ष कैसे होगा…
*आसं च छंद च विधीम च धीरे*
-वे धैर्यवान पुरुष कहलाते है जो आशा व स्वछंदता को छोड़ देते है
-अंग गल गया , पिला पड गया,*आशा है*.. साथ छोड़ने को तैयार नही।
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