क्रमांक – 22
. *तत्त्व – दर्शन*
*🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार*
*👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।*
*🔅 अजीव तत्त्व*
*✨अजीव के प्रकार*
*♦️काल*
*👉 काल के दो प्रकार माने गए हैं – व्यावहारिक काल और नैश्चयिक काल। समय, मुहूर्त, दिन, रात, पक्ष, मास, वर्ष, युग…. आदि व्यावहारिक काल हैं। यह काल केवल मनुष्य क्षेत्र में ही होता है तथा सूर्य-चन्द्र की गति के आधार पर इस काल का निर्धारण होता है। काल का सबसे सूक्ष्म भाग समय तथा सबसे उत्कृष्ट भाग पुद्गलपरावर्तन कहलाता है।*
*काल के सन्दर्भ में जैन-साहित्य में दो मत हैं। एक मत के अनुसार काल स्वतंत्र द्रव्य नहीं है। वह जीव और अजीव द्रव्य का पर्याय प्रवाह है। द्वितीय मत के अनुसार अन्य द्रव्यों की तरह काल भी एक स्वतंत्र द्रव्य है। प्रथम अभिमत के अनुसार समय, मुहूर्त, दिन, रात आदि जो भी काल के विभाजन हैं, वे सभी पर्याय विशेष के संकेत हैं। द्वितीय अभिमत के अनुसार जिस प्रकार जीव और पुद्गल की गति-स्थिति में धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय निमित्त कारण हैं, उसी प्रकार जीव और अजीव के पर्याय परिणमन में काल निमित्त कारण है। अतः यह स्वतंत्र द्रव्य है।*
*उपर्युक्त दोनों कथन विरोधी नहीं अपितु सापेक्ष हैं। निश्चय दृष्टि से काल जीव-अजीव की पर्याय है और व्यवहार दृष्टि से वह द्रव्य है। उसे द्रव्य मानने का कारण उसकी उपयोगिता है। ‘उपकारकं द्रव्यम्’ के अनुसार जो उपकारी है, वह द्रव्य है। वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व, अपरत्व – ये काल के उपकार हैं अतः काल को भी द्रव्य के रूप में माना गया है।*
*क्रमशः ………..*
*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*
विकास जैन।