चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सान्निध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ने कहा सफलता के मार्ग के पांच समवाय में से कालवाद के बारे में बताया कि काललब्धि परिपक्व होने पर ही किसी कर्म में सफलता मिलती है।
उसी प्रकार आत्मा को संयम प्राप्त होने में भी काललब्धि परिपक्व होने आवश्यक है। समय और काल को समझें। दूसरा स्वभाववाद के बारे में कहा कि उसे काल भी बदल नहीं सकता है। साध्वी डॉ. हेमप्रभा ने वैराग्य की तीन दशाएं निरुपित की है- दुखगर्भित, मोहगर्भित और ज्ञानगर्भित।
पहली दशा में मुमुक्षु अत्यधिक संकट आने पर उन्हें न झेल पाने की दशा में दुखी होकर संसार की नश्वरता को जान वैराग्य ले लेता है। दूसरी में व्यक्ति अपने प्रियजनों से वियोग या दीक्षार्थी प्रियजनों से मोह के कारण दीक्षा ले लेता है।
तीसरी दशा में व्यक्ति अपने पूर्व संस्कारों, सदुपदेश ग्रहण करने और आत्मज्ञान प्रकट होने पर विवेकपूर्वक निरीक्षण, परीक्षण, आलोचन करके संयम अंगीकार करता है। तीनों को जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट वैराग्य की श्रेणी कहा गया है।
साध्वी ने सुविपाक सूत्र में बताया कि सुबाहुकुमार का वैराग्य ज्ञानगर्भित, उत्कृष्ट श्रेणी का वैराग्य है। अगार धर्म ग्रहण कर विचार, चिंतन, मनन और पालन करते हुए उनके मन में वैराग्य की भावना जगी।
वे अनुमति लेने माता-पिता के पास जाते हैं जहां पर उनकी माता ममत्व के कारण संयम पथ के संकटों को बताती है और रोकने का प्रयास करती है लेकिन उनकी दृढ़ता के आगे अनुमति देते हैं। तपस्वियों का चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों ने स्वागत किया। हैदराबाद सहित अनेक स्थानों से श्रद्धालु उपस्थित रहे।