आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन जैन संघ में प्रवचन के माध्यम से लोगों को संबोधित किया, उन्होंने कहा कि कर्म तो हम अपनी इच्छा के अनुसार कर सकते हैं, पर अपने कर्मों का फल भोगने के लिए हम विवश होते हैं। अगर हम बबूल के बीज बोएँगे, तो बबूल के काँटे ही हमारे हाथ लगेंगे। बबूल का पेड़ लगाकर, हम आम के मीठे फल खाने की इच्छा करें, तो वह कभी पूरी नहीं होगी।
लोग जानते हैं कि किस काम का अच्छा फल मिलेगा और किसका बुरा। इसलिए हमें हमेशा ऐसे काम करने चाहिए, जिनके परिणाम अच्छे हों, जिससे हमें सुख और संतोष मिले। ऐसे काम से सदा दूर रहना चाहिए, जिसका नतीजा बुरा हो और चिंता तथा कष्ट बढ़ाने वाला हो। दुर्योधन अच्छी तरह जानता था कि पांडवों के साथ वह जो छल-कपट कर रहा है, उसका परिणाम बहुत बुरा होगा। गुरुजनों के समझाने-बुझाने का भी उस पर कोई असर नहीं हुआ। अंत में उसके दुष्ट कार्यों के फलस्वरूप कौरवों का विनाश तो हुआ ही, प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति को भी गहरा आघात पहुँचा।
रावण को अच्छी तरह ज्ञात था कि सीताजी का अपहरण करके वह बहुत ही अनुचित काम कर रहा है, लेकिन अपनी शक्ति के घमंड में उसने किसी के विरोध या उपदेश पर कोई ध्यान नहीं दिया। परिणाम यह हुआ कि सोने की लंका जलकर राख हो गई और विभीषण को छोड़कर रावण और उसके संपूर्ण कुल का विनाश हो गया। वे आगे बोले कि जिस प्रकार यह कहावत किसी व्यक्ति के जीवन में सच्ची साबित होती है, उसी प्रकार किसी राष्ट्र या देश के जीवन में भी खरी उतरती है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने अपने देश को विश्व का सिरमौर बनाने का स्वप्न देखा था।स्वदेश-प्रेम तो उचित ही है, किंतु उसने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए बहुत ही अनुचित मार्ग अपनाया।
उसने लाखों की संख्या में निरीह यहूदियों का संहार करवा डाला, यूरोप के छोटे-बड़े राष्ट्रों को पराजित कर उन्हें जर्मन साम्राज्य में मिला लिया और द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका तैयार कर दी।उसके दुष्ट कार्यों के फलस्वरूप, लगभग डेढ़ करोड़ नर-नारियों के रक्त से धरती लाल हो गई। अंत में जर्मनी की घोर पराजय हुई और उसके दो टुकड़े हो गए। जैसी करनी वैसी भरनी हमें इस कहावत को सदा स्मरण रखना चाहिए और किसी प्रकार का अनुचित कार्य करने के पूर्व उसके परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए। जिस प्रकार दीपक स्वयं को जलाकर अपने आसपास के वातावरण को प्रकाशित करता रहता है, उसी प्रकार हमें भी अपने तन-मन-धन को मानवता की सेवा में लगा देना चाहिए, ताकि हमारा जीवन सार्थक हो।