Share This Post

ज्ञान वाणी

कहा क्रोध, मान, माया लोभ भयंकर रोग है: पुष्पदंत सागर

कहा क्रोध, मान, माया लोभ भयंकर रोग है: पुष्पदंत सागर
कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा क्रोध, मान, माया लोभ भयंकर रोग है। शारीरिक रोग को समाप्त करना आसान है पर आध्यात्मिक रोग को समाप्त करना बहुत मुश्किल है। इससे बचने के लिए असली वैद्य की जरूरत है।
संसारी प्राणी को तीन रोग सता रहे हैं-जन्म, जरा और मृत्यु। शरीर को तीन तत्व वात, पित्त और कफ सता रहे हैं। अगर यदि इन तीनों का संतुलन बिगड़ जाए तो आदमी बीमार पड़ जाता है।
रोग का कारण पता लग जाए तो बीमारी जाने में समय नहीं लगता। संसार भ्रमण के तीन कारण हैं- मिथ्या, अज्ञान और असंयम। इसे महावीर मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन और मिथ्याचरित्र कहते हैं। इनके गर्भ में मोह राग और द्वेष का जन्म होता है। इनके कारण परिवार की शांति भंग होती है और परिवार के संबंध बिगड़ते हैं।
जिसने अपने जन्म,जरा, मरण के रोग मिटा लिए हों या उनको मिटाने की साधना में संलग्र हों वही असली वैद्य है। सच्चा साधु संन्यासी हो, रोगो का जानकार हो, स्वयं रोग से मुक्त हो गया हो, ऐसे वैद्य की दवाई काम करती है, गुणकारी होती है।
औषधि के सेवन के पहले अपथ्य का त्याग करना पड़ता है। क्रोध, मान, माया लोभ ये चारों जन्म मरण के रोग के कारण हैं। इनसे बचना ही मृत्यु से बचना है। यदि जीवन को सुरक्ष्ति रखना है तो भगवान की छत्रछाया चाहिए।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar