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कषाय भाव आने पर मौन ही औषधि है – साध्वी सुयशा

कषाय भाव आने पर मौन ही औषधि है – साध्वी सुयशा

जयजिनेंद्र, कोडम्बाक्कम वड़ापलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज ता:17 जुलाई रविवार, प.पू. सुधाकंवर जी मसा के मुखारविंद से:-आज उत्तराध्ययन की महिमा और तीसरे अध्ययन बताया! सम्यक पराक्रम, सम्यक दर्शन! सम्यक दर्शन वह बीज है जो चरित्र को वटवृक्ष बना देता है! जब तक सम्यक दर्शन नहीं आता तब तक मोक्ष के द्वार नहीं खुलते! हमें पुरुषार्थ करना चाहिए! आठ कर्मों में सबसे ज्यादा मोहनीय कर्म से लोग ज्यादा ग्रसित है इन कर्मों की निर्जरा होनी चाहिए। सम्यग दर्शन सिर्फ सामायिक करने से यह माला फेरने से नहीं होते!

सम्यग दर्शन को आंतरिक चक्षुओं से देखना होगा! बाहर की आंख खुलती है तो संसार दिखता है! भीतरी आंख खुलेगी तो दृष्टि बदल जाएगी और सृष्टि भी बदल जाएगी!हमें अवस्था को नहीं व्यवस्था को बदलना होगा! भव को नहीं भाव को बदलना होगा! दिशा बदलेगी तो दशा स्वत: ही बदल जाएगी!

सम्यक्त्वी की आत्मा और मिथ्यात्वी की आत्मा में क्या फर्क है..?

सम्यक्त्वी की आत्मा कांच की पेटी के समान पारदर्शी है जिसमें स्वयं को भी और दूसरों को भी, अंदर से भी और बाहर से भी, समान रूप से दिखाई देता है! लेकिन मिथ्यात्वी की आत्मा लोहे की पेटी के समान है जिसमें अंदर से और बाहर से किसी को भी, कुछ भी दिखाई नहीं देता!

पू.सुयशा श्री म सा ने फ़रमाया कि दरवाजा खोलना है तो कभी खींचना (pull) पड़ता है तो कभी धकेलना (push) पड़ता है! दोनों में Pressure (दबाव) जरूरत पड़ती है!वैसे ही हमारे जीवन को सुन्दर बनाने के लिए “Stability” (स्थिरता), Silence (मौन), Stamina (शारीरिक शक्ति), एवं seriousness (गंभीरता) की आवश्यकता है! जीवन में छोटी-छोटी समस्याओं के साथ कुछ बड़ी समस्या भी होती है! कभी-कभी सुबह की एक चाय हमारा मूड खराब कर देती है और पूरा दिन कलह सुलह में निकल जाता है!गलती चाय की हो या चाय बनाने वाले की हम आरोप-प्रत्यारोप में उतर जाते हैं! वाहन चलाते समय, हमें आगे पीछे दाएं बाएं, अपनी गति का और गियर ब्रेक, सबका ध्यान रखना पड़ता है!

हमें जीवन में कहीं Stability/ “स्थिरता” की जरूरत पड़ती है तो और कहीं हमें Silence “मौन” की जरूरत पड़ती है! हमारी शारीरिक शक्ति यानि हमारा Stamina अच्छा होना चाहिए! पोस्ट ऑफिस की तरह होना चाहिए जो समय पर खुलता है और समय पर बंद होता है! यानि हमारा खानपान हमारा व्यायाम सही समय पर होना चाहिए! हमें लेटर बॉक्स के समान नहीं बनना चाहिए जो 24 घंटे खुला रहता है! हर कोई बहुत अच्छा या बहुत बुरा नहीं होता! हर व्यक्ति कुछ खूबियों से और कुछ कमियों को लेकर चलता है! नाचना नहीं आता तो इसका मतलब आंगन टेढ़ा नहीं है! बाग बगीचा कितना भी सुंदर हो उस बाग बगीचे में कचरे की एक जगह या कोना निर्धारित रहता है! वैसे ही हमारी जिंदगी में हमें भी अच्छी चीजों को अपना लेना चाहिए और दिमाग के कचरे को एक तरफ सरका देना चाहिए या बाहर फेंक देना चाहिये!

*इतिश्री…!*

आज की धर्म सभा में भीलवाड़ा राजस्थान एवं चेन्नई के कई उप नगरों के श्रद्धालु जन उपस्थित थे। श्रीमान अशोक जी तालेड़ा ने 14 उपवास, श्रीमती सुशीला जी बाफना ने 6 उपवास, श्रीमती प्रकाश जी लालवानी ने 5 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।

*🙏जयजिनेंद्र!*

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