सिरुनतुर, तिरुवन्नामलै (तमिलनाडु): तमिलनाडु राज्य की राजधानी चेन्नई में वर्ष 2018 का ऐतिहासिक चतुर्मास सुसम्पन्न कर तमिलनाडु राज्य की धरती पर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ बुधवार को एक नए जिले तिरुवन्नामलै में पावन प्रवेश किया। इस प्रकार अहिंसा यात्रा के साथ आचार्यश्री ने तिरुवन्नामलै जिले की सीमा में विहरण प्रारम्भ किया।
बुधवार की प्रातः आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ सेम्मडु स्थित वी.पी.एन. काॅलेज से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री ने कुछ किलोमीटर के विहार के पश्चात् ही विल्लुपुरम जिले की सीमा को अतिक्रान्त कर तिरुवन्नामलै जिले की सीमा में पावन प्रवेश किया। इस प्रकार आचार्यश्री अपनी अहिंसा यात्रा के साथ तिरुवन्नामलै जिले की धरा पावन बनाने के लिए गतिमान हुए। तिरुवन्नामलै की धरती भी ऐसे महापुरुष राष्ट्रसंत के स्पर्श को पाकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रही थी। आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर सिरुनतुर गांव स्थित लक्ष्मी अम्मल मैट्रिकुलेशन स्कूल में पधारे।
विद्यालय परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी सुनकर कल्याण को जान लेता है और सुनकर पाप को भी जान लेता है। सुनने से आदमी पाप और कल्याण दोनों को जान लेता है, किन्तु इनमें से जो श्रेय हो आदमी को उसका समाचरण करने का प्रयास करना चाहिए। दो प्रकार की स्थितियां होती हैं-श्रेय और प्रेय। कई स्थिति ऐसी भी होती है जो आदमी को प्यारी तो लगती है, किन्तु वह उसके हितकारी नहीं होती। जैसे किसी शुगर के मरीज को मिठा खाना प्रिय हो सकता है, किन्तु वह उसके लिए हितकारी नहीं हो सकता। इसलिए आदमी को प्रेय नहीं श्रेय का ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए और श्रेय मा समाचरण भी करने का प्रयास करना चाहिए।
इस मानव जीवन का समय तो व्यतीत होता जा रहा है। आदमी को यह चिंतन करना चाहिए कि वह अपनी आत्मा के कल्याण के लिए क्या कर रहा है। आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए आदमी को ज्ञान का श्रवण करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को प्रवचन श्रवण का प्रयास करना चाहिए। प्रवचन श्रवण से कई बार समस्याओं का समाधान मिल सकता है तो कई नई बातों की जानकारी भी हो सकती है। सुनने से आदमी बोलने की शैली का अभ्यास और शब्दों का प्रयोग का तरीका भी जान सकता है। इसके लिए आदमी को ध्यान से सुनने का प्रयास करना चाहिए। प्रवचन श्रवण के समय पूरा ध्यान सुनने पर लगाना चाहिए।
जो सुनें उसे ग्रहण करने और बाद में उसका मनन करने का प्रयास हो तो ज्ञान और भी पुष्ट हो सकता है। प्रवचन श्रवण पूर्ण जागरूकता और धैर्य के साथ श्रवण करने का प्रयास करना चाहिए। इस दौरान नींद न आए, ऐसा भी प्रयास होना चाहिए। इस प्रकार आदमी को सुने और उससे प्राप्त ज्ञान जो श्रेय हो उसे आचरण में लाकर में स्वयं को कल्याण की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।