कल्याण, उपकार, अच्छाई, हित, नेकी, ये वे चीजें हैं जिसकी धुरी पर ही ये संपूर्ण संसार का अस्तित्व जीवंत है। इन पर्यायवाची को अगर समेटा जाए तो जिस सहजशब्दया प्रवृत्ति का पता चलता है उसे भलाई या परोपकार के नाम से जाना जाता है। एक ऐसी प्रवृत्ति जो प्राणी जन्मजात स्थायी रूप से प्राप्त करता है।
उपरोक्त बातें श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन मूर्तिपूजक जैन संघ प्रवचन देते हुए आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने कही, वे आगे बोले कि कल्याणकारी प्रवृत्ति प्रकृति प्रदत्त है। विश्वास करना चाहते हैं तो स्थिर मन से अपने आस-पास की प्रकृति का अवलोकन कीजिये। पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते हैं और तालाब भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन पुरुष वे हैं जो दूसरों के हित के काम के लिए संपत्ति जमा करते हैं। प्रकृति प्रदत्त यह प्रवृत्ति बड़ी ही शक्तिशाली होती है। कल्याणकारी भाव मानव जाति की वह पूँजी है जो कभी समाप्त नहीं होगी। ये पूँजी जीवन को जीवित रखने की एकमात्र औषधि है।
वर्तमान में इसकी शक्ति को पहचानने की आवश्यकता है।भलाई का मतलब, नैतिकता, उत्तमता या सद्गुण है। लेकिन इसका मतलब सिर्फ हर तरह की बुराई से दूर रहना नहीं है। भलाई, आत्मा का एक फल है और यह दूसरों की ख़ातिर अच्छे काम करने के जरिये दिखाई जाती है। आचार्य श्री ने आगे कहा कि संपन्न व्यक्तियों को चाहिए कि वह गरीब व्यक्ति से पूछकर उसकी आवश्यक चीज को उसे उपलब्ध कराएं। उसके बदले में उससे कोई कार्य कराने की इच्छा न रखें, तो यह असली परोपकार है। परोपकार मनुष्य का सर्वोपरि गुण माना जाता हैं। यह गुण सभी मनुष्यों में नहीं पाया जाता हैं। जिस व्यक्ति में वह गुण होता हैं।
वह आचारणवान होता है। अर्थात अपने कर्मो से महान बनता है। वह संसार में कुछ न करके भी बहुत कुछ कर जाते हैं। परोपकार मानव जीवन का एक अमूल्य रत्न है। यह एक ऐसा मानवीय गुण है, जिसे धारण करने से मनुष्य एक सर्वश्रेष्ठ प्राणी बन जाता है। जैसे एक माह अपने बच्चे को दूध पिलाती है पर जीवनभर इसके बदले में वह कुछ नहीं मांगती है। मानव एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर उसे अन्य प्राणियों के प्रति कुछ दायित्वों का भी निर्वाह करना पड़ता है। किसी व्यक्ति पर संकट आने पर दूसरों को उसकी सहायता अवश्य करनी चाहिए। चन्द्रमा की शीतल किरणें भी सभी का ताप हरती है। मेघा सबके लिए जल की वर्षा करते है। वायु सभी के लिए जीवनदायिनी है। महान देशभक्तों ने परोपकार की भावना से प्रेरित होकर ही अपने प्राणों की बलि दे दी। परोपकार की भावना से मानव के व्यक्तित्व का विकास होता है।