Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

कल्पसूत्र जैन धर्म का पवित्र ग्रंथ, सुनने वाले होते हैं भव सागर से पार: साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

कल्पसूत्र जैन धर्म का पवित्र ग्रंथ, सुनने वाले होते हैं भव सागर से पार: साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

पर्यूषण पर्व के चौथे दिन जैन साध्वियों ने अंतगढ़ सूत्र और कल्पसूत्र का किया वाचन

Sagevaani.com @शिवपुरी। भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के लगभग 1000 वर्ष बाद आचार्य भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र जैन आगम ग्रंथों में सर्वाधिक उपकारी ग्रंथ है तथा इस पवित्र ग्रंथ को सुनने वाले भव सागर से पार हो जाते हैं। पर्यूषण पर्व के दौरान स्थानकवासी समाज में जहां अंतगढ़ सूत्र वहीं मंदिर मार्गी समाज में कल्पसूत्र के वाचन की परम्परा है। कल्पसूत्र से जैन संतों के आचार विचार की जानकारी मिलती है। संतों और साध्वियों को क्या कल्पता है और क्या नहीं? इसका पता चलता है। उक्त उद्गार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने आराधना भवन में पर्यूषण पर्व के चौथे दिन कल्पसूत्र का वाचन करते हुए व्यक्त किए।

धर्मसभा में साध्वी पूनमश्री जी ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन किया। गुरुणी मैया साध्वी रमणीक कुंवर जी ने बताया कि शास्त्रों का श्रवण श्रावक और श्राविकाओं को सिर ढककर करना चाहिए। आगमों के प्रति आदर व्यक्त कर हम जिनवाणी का सम्मान कर सकते हैं।

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अंतगढ़ सूत्र और कल्पसूत्र के उपयोगी संदेश को भी इस अवसर पर स्पष्ट किया। उन्होंने अंतगढ़ सूत्र में भगवान कृष्ण के जीवन की घटनाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि जब वह राजमार्ग से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक वृद्ध व्यक्ति ईंटों के ढेर में से एक-एक ईंट उठाकर मकान में रख रहा था।

यह देखकर भगवान कृष्ण द्रवित हो उठे और उन्होंने रथ से उतरकर उस वृद्ध व्यक्ति की सहायता हेतु एक ईंट उठाकर मकान में रख दी। उनके यह करते ही भगवान श्रीकृष्ण के सैकड़ों अनुचर भी ईंट उठाने में जुट गए जिससे पल भर में ही वह काम पूर्ण हो गया। इस उदाहरण से साध्वी जी ने स्पष्ट किया कि महापुरुष इसी तरह हमें हर व्यक्ति के सहयोग की प्रेरणा देते हैं। इससे यह भी प्रेरणा मिलती है कि कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता, सिर्फ मानसिकता छोटी बड़ी होती है।

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि कल्पसूत्र में जैन तीर्थंकर पाश्र्वनाथ भगवान और भगवान महावीर का जीवन चरित्र बताया गया है। इससे साधुओं के आचार विचार की भी जानकारी मिलती है। 2&वे तीर्थंकर और 24वे तीर्थंकर भगवान महावीर के समय साधु साध्वी श्वेत वस्त्र धारण करते थे। उस समय साधु साध्वी या तो जिन कल्पी होते थे या स्थविर कल्पी। जिन कल्पी जंगलों में निर्वस्त्र रहते थे और जब शहर में आते थे तो कोई ना कोई वस्त्र धारण करते थे। संतों के लिए राजा महाराजाओं का आहार भी नहीं कल्पता है। इससे आलस्य, रस उत्पत्ति और मोह बढ़ता है।

उन्होंने कहा कि संत जीवन में धन, पद और प्रतिष्ठा का कोई मूल्य नहीं है। सिर्फ चारित्रिक पर्याय को प्राथमिकता मिलती है अर्थात् जिसने पहले दीक्षा ली है वह अन्य दूसरे साधुओं के लिए वंदनीय है। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि संतों को चातुर्मास के अलावा एक स्थान पर 29 दिन और साध्वियों को 58 दिन से अधिक नहीं ठहरना चाहिए। अंत में उन्होंने कहा कि साधु और साध्वी चाहे किसी भी धर्म, सम्प्रदाय के हों उनका आदर करना चाहिए। धर्मसभा में साध्वी जयश्री जी ने सुंदर भजनों का गायन किया।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar