पापों, कर्मबंधनों की आलोचना तथा आपस में क्षमायाचना की…
बीकानेर। यहां हृींकारगिरी तीर्थ धाम में दिव्य भक्ति चातुर्मास कर रहे राष्ट्रसंत डॉ. वसंतविजयजी म.सा. ने सोमवार को पर्यूषण पर्व के अंतिम दिवस कल्पसूत्र के मूल प्राकृृत भाषा के पाठ, समाचारी, बारसा सूत्र का वाचन किया। साथ ही कल्पसूत्र के वाचन के मुख्य बिंदू के चित्रितरण सुवर्ण पन्नों के दर्शन कराए गए।
डॉ. वसंतविजयजी म.सा. ने कहा कि कल्पसूत्र को दिल से 21 बार पढ़-सुन लेने से मनुष्य मोक्षगामी हो जाता है। कल्पसूत्र को हृदय में उतारने के लिए श्रद्धा रखें तभी कल्याण होगा। विपत्तियों से भी मुक्ति मिलेगी। उन्होंने कल्पसूत्र में आए जैन धर्म के तीर्थंकरों और महापुरुषों के जीवन-आदर्शों से प्रेरणा लेकर आत्म कल्याण और मोक्ष के लक्ष्य से परमात्मा की साधना, आराधना व भक्ति करने का आह्वान भी किया।
वे बोले कि पाप कर्मों के प्रति सचेष्ट व सावचेत ही रहें और परमात्मा से प्रार्थना करें कि पाप कर्मों से हमें हमेशा बचाए रखना। इस मौके संवत्सरी पर्व पर श्रावक-श्राविकाओं ने जप, तप व सामयिक, पौषध व प्रतिक्रमण किया तथा साल में जाने-अनजाने में हुए पापों व कर्मबंधनों की आलोचना तथा आपस में क्षमायाचना की।
उन्होंने क्षमायाचना पर प्रकाश डाला कि आत्मा को हल्का महसूस करना है तो अपने मां-पिता, भाई, बहिन, पत्नि से भी आप का वैर हुआ होगा तो आप क्षमा मांग कर बड़ा बन रहे हैं न कि छोटा। क्षमायाचना करते समय हृदय में क्षमा व दया का भाव होना चाहिए। इस मौके आलोचना करवायी जिसमें पिछले वर्ष अपने द्वारा जाने-अनजाने में किए गए गलत कार्यों, गलतियों की क्षमा मांगी गयी।
अपने धर्म की बड़ाई करते हुए बारम्बार, बारम्बार, बारम्बार मिच्छामी दुक्कड़म, मिच्छामी दुक्कड़म, मिच्छामी दुक्कड़म का उद्घोष श्रावक-श्राविकाओं को डॉ. वसंतविजयजी म.सा. ने कराया।
उन्होंने कहा कि जैन समाज का ही यह एक ऐसा त्यौंहार है जिसमें क्षमा मांगी जाती है और इस पावन पर्व पर यह कार्य करना ही चाहिए। श्री नगीन भाई कोठारी चैरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी जय विजय कोठारी ने बताया कि हृींकारगिरी तीर्थ धाम में प्रतिष्ठापित मूलनायक परमात्मा पाश्र्वनाथजी की प्रतिमा का विधिकारक हेमंत वेदमूथा मकशी द्वारा 50 दिवसीय 18 अभिषेक सोमवार को भी जारी रहा।
देशभर से आए धर्मप्रेमी बंधुओं ने की तपस्या
चातुर्मास हेतू विराजित श्रीकृष्णगिरी शक्तिपीठाधिपति यतिवर्य डॉ. वसंतविजयजी म.सा. की पावन निश्रा में सम्पूर्ण भारत से आए धर्मप्रेमी बंधुओं द्वारा पर्यूषण पर्व के दौरान तपस्या की गयी। 12 जनों ने अठाई उपवास, 6 अठम तप, 1 चार उपवास, 2 तीन उपवास, 17 जनों ने एक उपवास व 30 जनों ने एकासना किया।