Share This Post

ज्ञान वाणी

कलह का मूल कारण है कड़वे वचन: जयधुरंधर मुनि

कलह का मूल कारण है कड़वे वचन: जयधुरंधर मुनि

चेन्नई. कोण्डीतोप स्थित समता भवन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा होठों की लालिमा तो शाम तक फीकी पड़ जाती है, किंतु जुबान की मिठास जीवन व सुंदरता प्रदान करती है। बोली के दो काम हो सकते हैं किसी के दिल में उतरना अथवा किसी के दिल से उतर जाना।

गर्म पानी से हाथ जलता है जबकि गर्म वाणी से दूसरों का हृदय जलता है। जिस प्रकार खारे पानी वाले गांव में कोई बसना नहीं चाहता उसी प्रकार खारी वाणी वाले व्यक्ति को दिन में कोई बसाना नहीं चाहता।

वचनों से ही काम बनता है और वचनों से ही काम बिगड़ता भी है। शरीर के ऊपर किए गए घाव तो मरहम पट्टी करने के बाद कुछ समय में ठीक हो जाते हैं लेकिन कठोर वचनों द्वारा किए गए घाव का कोई इलाज संभव नहीं है और यह घाव सामने वाले को लंबे समय तक पीडि़त करता रहता है।

जीभ रत्नों का भंडार है और दांत उसके पहरेदार। अत: उसे जुबान की सुरक्षा करते हुए मधुर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। व्यक्ति जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करता है उसे वैसे ही शब्द सुनने पड़ते हैं। मित्र बनाने का काम वाणी ही करती है तो शत्रु भी वाणी से ही बनते हैं।

वाणी का विवेक रखने से जीव पाप कर्मों के बंध से बच जाता है क्योंकि जितने कर्म बंध काया से होते हैं उससे कहीं ज्यादा वचनों के विवेक के कारण होते हैं।

मनुष्य को जिस समय जरूरत होती है उसी समय बोलना चाहिए अन्यथा वाचाल को कोई भी पसंद नहीं करता। मुनिवृंद के सानिध्य में रविवार को सप्त दिवसीय बालसंस्कार शिविर का समापन समारोह आयोजित होगा जिसमें बालक-बालिकाएँ अपनी प्रस्तुति देंगें।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar