चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ने सफलता के लिए तीसरा कर्मवाद सिद्धांत बताते हुए कहा कर्म का यह स्वभाव है कि ये जीवात्मा से चिपकते ही हैं जिस प्रकार चुम्बक लोहे से चिपक जाता है। जीवात्मा को राग, द्वेष, मोह के कारण कर्मों का बंध होता है।
मोहनीय कर्म सभी कर्मों का राजा है। इसी से लाभ, हानि, सुखी, दुखी, हंसना, रोना सभी चलते रहते हैं, मोहनीय कर्म सभी से अधिक दुखदायी है लेकिन मनुष्य को यह दुखदायी नहीं लगता, उसे तो वेदनीय कर्म ही खटकते हैं।
मोहनीय कर्म जीवात्मा को संसार में जीवनभर नचाता है। आयुष्य कर्म के फलस्वरूप जीव को इस शरीर रूपी जेल में कैद होना पड़ता है। उसका आयुष्यकर्म का जितना बंध होता है वह उतनी आयु प्राप्त करता है। जब तक उसके कर्म क्षय नहीं होते वह चौरासी में भटकता रहता है।
साध्वी डॉ. हेमप्रभा ने कहा चरम तीर्थेश प्रभु ने उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है कि इस संसार में दो प्रकार के व्यक्ति हैं, एक रागी पुरुष और दूसरे वैरागी पुरुष। रागी पुरुष संसार में आकर अपनी पंचेंद्रियों के वशीभूत होकर इसी में आसक्त रहते हैं यह आसक्ति जीवन पर्यंत रह गई तो न जाने कितने ही भव बिगड़ जाएंगे। आज के समय में व्यक्ति आधुनिकता के वश और अधिक आसक्ति में फंस रहा है।
कैमरे के सामने कुछ भी आए तो उसे वह ग्रहण कर लेता है लेकिन दर्पण के सामने कुछ भी आए तो वह उसे ग्रहण नहीं करता बल्कि उसे परावर्तित करता रहता है इसी प्रकार व्यक्ति को संसार के प्रति विरक्त भाव से दर्पण के समान जीना चाहिए न कि कैमरे की तरह। सांसारिक वस्तुओं का उपयोग आवश्यकता के लिए किया जाए, उपभोग और लालसा पूर्ण करने के लिए नहीं।
परमात्मा कहते हैं कि तुम संसार साधनों का उपयोग करो, उपभोग मत करो। व्यक्ति स्वयं की करनी स्वयं ही करता है, अपने पापों का भागी स्वयं ही होता है। ११ अगस्त को मरुधर केसरी मिश्रीमल एवं लोकमान्य संत रूपचंद की जन्म-जयंती मनाई जाएगी।