चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सरीश्वर ने कहा कर्म के सिद्धांत पर श्रद्धा रखना जरूरी है। इस जगत में जितने भी प्राणी है सब कर्म और काल परिणति की संतान है। पूरे संसार में उनका साम्राज्य है।
आज हमारा जन्म विशेष जगह और घर में हुआ, यह उनका आदेश है। काल परिणति का का आदेश यह है कि अमुक समय पर ही जन्म लेना है। इस प्रकार कर्म और काल के निर्णयानुसार पुत्र या पुत्री का जन्म होता है।
यदि अपने मन से कुछ भी स्वीकार करोगे तो अन्दर से कंटाल जाओगे। वर्तमान में माता पिता तो निमित्त हैं, वे हमारे कर्मानुसार मिले हैं। गुरु भी कर्म और काल के अनुसार मिलते हैं, इच्छा के अनुसार नहीं।
उन्होंने कहा संसार में जीव दो प्रकार के होते हैं प्रबुद्ध और अबूझ। प्रबुद्ध व्यक्ति को समझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। वह इशारों में समझ जाएगा, तर्क वितर्क नहीं करना पड़ेगा। उसे दृष्टांत देने की जरूरत नहीं पड़ती। अबूझ व्यक्ति को समझाने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। अज्ञानी व्यक्ति को समझा सकते हैं लेकिन मूर्ख को नहीं समझा सकते हैं।
उन्होंने कहा हरिभद्रसूरि महाराज ने धर्म प्राप्ति के 21 गुण बताए। धर्म को समझने के लिए सूक्ष्म बुद्धि चाहिए। सूक्ष्म बुद्धि से कार्य किए जाए तो वाद विवाद की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा सद्गुरु प्रबुद्ध होने चाहिए। जिसमें ज्ञान है वे सद्गुरु है और यदि ज्ञान नहीं है तो अबूझ है। शिष्यत्व का आस्वाद जीवन में कभी नहीं आएगा।
महावीर भगवान के शिष्य गौतम प्रबुद्ध थे और गौशाला अबूझ थी। जब गौतम महावीर भगवान के पास आए तब उन्हें अपने ज्ञान का अहंकार था। महावीर भगवान ने उनको खाली करने का काम किया।
महावीर भगवान गौतम को टोकते थे कि एक क्षण का प्रमाद मत कर। उनकी बात पर गौतम ने कभी गुस्सा नहीं किया। गौतम को अन्दर से आनंद होता था। गौतम यह समझते थे कि गुरु भगवंत मेरी कितनी चिंता करते हैं, मैं कितना पुण्यशाली हूं, गुरु भगवंत मेरे पर कितना उपकार कर रहे हैं। शिष्य की सोच हमेशा ऐसी ही होनी चाहिये।
उन्होंने कहा कर्म और काल की परिणति की ताकत असंख्य बच्चे पैदा करने की है लेकिन यह बात किसी को बताई नहीं गई क्योंकि दुर्जन की नजर न लग जाए। उन्होंने कहा प्रसिद्धि से आप जितना दूर रहेंगे, आपकी रक्षा होगी। साधना में आगे बढऩा है तो प्रसिद्धि से बचने की कोशिश करो।