पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि पर्युषण पर्व का आज छठा दिवस है! यह आठ दिन क्षण भर में व्यतीत हो जाएंगे ऐसा प्रतीत होता है। अभी दो दिन शेष है यदि आपने अभी तत्व धर्माराधना नहीं की तो चौविहार पौषध सवंतसरी के दिन कर ले तो, कर्म निर्जरा हो सकती है। यह आठ दिन के प्रवचनों से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि कैसी भी परिस्थिती हो समता भाव रखो ! कर्मो के उदय के निमित्त को शुभ समझो।
कर्म निर्जरित होगें तो शीध्र कल्याण होगा। सिंह की तरह बनो! सिंह को छेड़े तो वह पथर को नहीं मारने वाले पर आक्रमण करता है किंतु कुता पथर पर आक्रमण करता है। सुख में फूले नही दुख में रोए नहीं। सुख दुख कर्म का खेल है। इनमे समभाव रखो।यह मानव जीवन तोड़न के लिए मिला है। भगवान महावीर को महान कर्मो का उदय आए। किंतु उन्होंने समभाव रख कर कर्म निर्जरित कर दिए। संगम देव ने भगवान को इतना परिषह दिया कि एक रात्रि में 20 उपसर्ग दिया और छः मास तक आहार पानी का लाभ भी मिलने नहीं दिए। किंतु भगवान की क्षमा करुणा इतनी थी कि संगम देव के कर्म बंध को देखकर भगवान के आखो में आसु आ गये।
खुद की उन्होंने कोई परवाह नहीं की। भगवान ने अनंत कर्मो की निर्जरा की सहज में आए उपसर्ग, परिषह को समभाव को सहन कर लेना है। सामायिक का लक्ष्य है विभाव में नहीं जाना। समभाव से कर्मबंध नहीं होते है! विभाव में कर्म बंध। स्वभाव में कर्म क्षय। स्वभाव किसे कहते है? स्व को देखना आत्म दर्शन का आइना। भगवान कहते है स्वयं को देखो, पर को छोडो। स्वंय की कमियों को देखो! त्रुटियों को देखो। अनादिकाल से जीव पर को ही देखता आया टोकता आया। पर को देखो। अपने को देखों यदि स्व को देखे तो कर्म निर्जरित होकर मुक्त हो सकते है। स्वयं को तारने के लिए एक सामायिक ही काफी है किंतु उसमें इसका स्प को देखना होगा।
किंतु यह जीव विभाव में आता है तो वाणी कटु, भौहे तन जाती है। हृदय कठोर बना जाता है और दूसरो को दुख देने की चेष्टा करता है! 1 चिंतन करें। सामायिक क्यों करनी चाहिए? अपने आप को देखने के लिए । यदि आपसे पूछा जाय कि आपका स्वभाव कैसा है ? तो कोई नहीं बता सकता । किंतु यदि सासुजी बहुजी आदि का स्वभाव पुछे तो फटाफट जवाब आ जायेगा । प्रभु कहते हैं दुसरो को दोष मत दो स्वयं को देखो। जीव का स्वभाव कैसा ? जीव का स्वभाव है परम शांत रहना।
तो यह जीव सिध्द बुद्ध मुक्त हो जायेगा। भगवान कहते है आप कौन है ? मैं आत्मा हूँ! आत्मा को कभी कष्ट नहीं होता दुःख नहीं होता । प्रवचन के पश्चात ज्ञान युवक मण्डल, रायपुरम द्वारा मनोरंजक धार्मिक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। ज्ञानचंद कोठारी ने प्रतियोगिता का संचालन किया। सभी विजेताओं को ईनाम अध्यक्ष पारसमल कोठारी व कोषाध्यक्ष धनराज कोठारी ने दिया। मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने आगामी कार्यक्रमो की सूचना दी।