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कर्म जीव को भोगना पड़ते है: प्रकाश मुनि जी मासा

कर्म जीव को भोगना पड़ते है: प्रकाश मुनि जी मासा

कर्म जीव को भोगना पड़ते है। पुज्य की प्रवर्तक प्रकाश मुनि जी मासा कीर्ति – प्रताप-यश – गौरव-राशि युक्तं।…..

चन्द्रमा पुर्णिमा पर खिलता है, निर्मल, धवल, शांत पवित्र रूप होता है

*निर्मल*-साफ, *पवित्र*- उत्तम जो पवित्र हो उसको शिरोधार्य करते है।

मुनि 8 बातो पर उपदेश करे शांति, विरती, निर्वाण,क्षमा *पवित्रता* पर उपदेश करे, मल-जमा हुआ, जमता है वह सड़ता हे चाहे मल, हो, नाली का कचरा हो वह सड़ता है। परमात्मा तिजोरी के माल को घास कहते है आपने उसको कीमती मान रखा है जो आत्मा *शीतल* होती है वह *पवित्र* होती है। गुरुदेव का स्वभाव निर्मल था, न वाणी, न मन में, न व्यवहार में कहीं मल नहीं था, पवित्र थे। सबको सन्मान दिया। बच्चों के मन…मत तोड़ो, मन को, वचन को, व्यवहार को पवित्र बना ले ,आने वाला पवित्र हो जाये। आपका व्यवहार निर्मल हो कि आने वाला आपके पास बैठने की ईच्छा करे। आने वाले को बिना बोले मन शांत व पवित्र हो जाय मुनि का व्यवहार पवित्र हो। पवित्र मतलब उद्दात्त व्यवहार ,बाणी हो। *श्रेष्ठ*-उत्तम पुरुष, जिसका व्यवहार उत्तम हो जो सामान्य पुरुष में नहीं पाया जाय वह उसमें हो। जो *जिनशासन* में आया वह उत्तम हो ही जाता है। स्थान, इंसान पवित्र होता है खुद पवित्र हो तो आने वाला पवित्र हो जाता है हम निर्मल है पवित्र नही। जिसकी उत्तम भावना दुराव भाव नहीं ।

● *दोस्त व मित्र में क्या फर्क है?*

*दोस्त*- जो दो बातों का अन्त कर दे विनय व विवेक, समय- संपत्ति नष्ट करे वह दोस्त, आपकी बुराई को छुपा दे वह दोस्त । वह बुराई में साथ देता है।

 *विनय*- बड़ों का मान सम्मान नहीं। *विवेक* – कहा पीना कब पीना पता नहीं

मित्र- जिसका व्यवहार मित हो। जो साथ में रहता है समस्या को सुलझा दे वह मित्र जो साथ में कम रहता हे कम बोलता है सलाह अच्छी देता हैl आपके दोस्त ज्यादा है मित्र कम है ..जो समय भी खाते है पैसा भी खाते है।

जिसको लाये हो उसके साथ मित्रता रखो। जो बाहर से अच्छा दिखता है, वैसा अन्दर से दिखे मिलना मुश्किल घर में जीना अलग, परिवार में जीना अलग, घर वाले आपकी बात उजागर नहीं करते है। दोस्त धोखा देता है परिवार में मित्रता रहती है।

जहाँ शांति से रहना है वहाँ तुफान से रहते हो। कहाँ जी रहे हो? सामायिक की व्याख्यान सुना व्यवहार बदलो T निर्मल नहीं होंगे तो पवित्र कहाँ से होंगे। नहाने से पवित्र होते है क्या? झमकलाल जी ओरा ज्योतिष के विद्वान थे। एक दोहा बोला दुनिया में पड़ गया अक्ल का टोटा, गंदगी कोन करें ओर मांजे लोटा ।

शरीर को मांज रहे है, अन्दर का हाल क्या हे? धर्म करना नहीं, धर्म को जीना है, जिसको घर में जीना आ गया वह संयम में जीता है।

आत्मा की आग, कषाय की आग शांत होनी चाहिए। जो सोचेगा वहीं कर्म बांधता हे। तुमने कुछ भी कह दिया विचार में नहीं लाया तो कर्म नहीं बंधता ,फल किसको भोगना, जिस दुनिया में बेटा बाप का नहीं हुआ उस दुनिया को अपना मानु इससे बड़ी मुर्खता नहीं।यहां कोई किसी का नहीं। सब स्वार्थ के रिष्ते जानते है पर समझते नहीं।

चिंतन नहीं हो रहा है, कोई साथ देने वाला नहीं। आज नगद कल उधार, इसी में जी रहे हो। पढ़े बीना, भाषा सुधरती नहीं। भाषा सुधरती है। तुम निंदा करके कर्म बांध रहे हो। वाहवाही के लिये करते हो।

दुनिया से क्या लेना देना! जो कोई आपको सलाह देने आये उसको क्या बोलेगा! तु थारा घर की देख! यही बोलेगो । हम फोकट की सलाह देते हे सलाह देने वहीं जाता है जिसकी घर में कोई सुनता नहीं।

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