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ज्ञान वाणी

कर्म के उदय को समभाव से भोगने की कला ही धर्म है : कपिल मुनि

कर्म के उदय को समभाव से भोगने की कला ही धर्म है : कपिल मुनि
चेन्नई :  यहाँ रायपेटा में श्री पुरम स्ट्रीट स्थित केसर हॉल में क्रांतिकारी संत प्रखर वक्ता श्री कपिल मुनि जी म.सा. ने गुरुवार को कहा कि मनुष्य का जीवन ही इस योग्य है कि हम अपना सही मूल्य पहचानें यदि जीवन में इस बात को भूल गए तो अन्य जन्मों में इस भूल का सुधार संभव नहीं है । उन्होंने कहा कि कदम कदम पर व्यक्ति को प्रत्येक क्रिया में  विवेक रखना चाहिए । जरा सी लापरवाही कभी कभी घोर अनर्थ कर देती है ।
मुनि श्री ने कहा कि व्यक्ति के जीवन में कर्मो के आक्रमण का कारण है कि उसके भीतर आस्था का दीप बुझ गया है । जिसने देव गुरु धर्म का सहारा लिया है उसके जीवन से सारे भय विदा हो जाते हैं । भयभीत वही होता है जिसका कोई सहारा नहीं होता। उन्होंने कहा कि विपरीत हालातों में इंसान जो कुछ भी भोगता है उससे सर्वाधिक प्रभावित उसका मन होता है । दरअसल सुख दुःख को मन ही भोगता है । मन की निराश और हताश दशा व्यक्ति को तोड़ डालती है । अरिहन्त भगवान की स्तुति का संगान मन को शुद्ध,संयमित,और आशावादी बनाने में अहम् भूमिका निभाता है  मुनि श्री ने कहा कि इंसान का जीवन क्षणभंगुर और अल्पकालीन है ।
उसमे भी कदम कदम पर विघ्न बाधाओं का जाल बिछा हुआ है । ऐसी स्थिति में पूर्व में संचित कर्मों  को क्षय करने के लिए धर्म आराधना में देरी नहीं करना चाहिए । मुनि श्री ने कहा कि आज के दौर में सहनशीलता घटती और स्वछंदता बढती जा रही है ।जिससे संयुक्त परिवार की प्रथा टूटने लगी है । व्यक्ति की संकुचित सोच और स्वार्थ प्रधान जीवन शैली ने अपनों को भी पराया बना दिया है । परिवार और संघ समाज की एकता बलिदान और त्याग पर ही आधारित होती है ।व्यक्ति एक दूसरे के हित का ख्याल रखते हुए स्वार्थी भावना से ऊपर उठे और परमार्थ  के कार्य सम्पन्न  करके जीवन को सार्थक मुल्य प्रदान करना चाहिए।
 कहा कि इंसान को कर्म के प्रति सावचेत रहना चाहिए ।जीवन में जो कुछ भी अच्छा बुरा घटित होता है वो कर्म का ही प्रतिफल है । धार्मिक कार्यों में बाधा डालने से अंतराय कर्म का बंध होता है कालांतर में जिसके उदय से व्यक्ति के हरेक कार्य में बाधा आती है । अत: अच्छे और धार्मिक कार्यों में स्वयं जुड़कर दूसरों को जोड़ने का अद्भुत कार्य करके धर्म दलाली का लाभ लेना चाहिए । लेकिन किसी के अच्छे कार्य में व्यवधान डालने का पाप हर्गिज भी नहीं करना चाहिए ।
उन्होंने कहा कि कर्म के मर्म को समझे बगैर धर्म को समझना बेहद मुश्किल है । इसलिए कर्मों की कातिल कुटनीति को दृष्टि के समक्ष रखकर जीवन जीना चाहिए । यहाँ कर्म की अदालत में किसी का बच पाना असंभव है ।संसार के सभी शुभ अशुभ संयोग कर्म के अधीन हैं । कर्म के उदय को समभाव से भोग लेने की कला का नाम ही धर्म है । कर्म के उदय में यदि व्याकुल होंगे तो कर्म की और गहरी मार पड़ेगी । और यदि स्थिर रहोगे तो कर्म की जड़ उखड जायेगी । इस मौके पर जवाहर लाल नाहर ने सभी आगंतुकों का सत्कार किया ।

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