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कर्म काटने की कला है श्रावक के 12 व्रत: जयधुरंधर मुनि

कर्म काटने की कला है श्रावक के 12 व्रत: जयधुरंधर मुनि
जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में श्रावक के 12 व्रतों के शिविर के दौरान जयधुरंधर मुनि ने कहा भगवान महावीर के सिद्धांत त्रिकाल लाभदायक होते हैं ।
इन व्रतों से आध्यात्मिक एवं आत्मिक लाभ तो प्राप्त होता ही है साथ ही सभी प्रकार की सामाजिक ,राजनीतिक एवं आर्थिक समस्याओं का समाधान भी स्वतः ही प्राप्त हो जाता है । आतंकवाद ,चोरी, डकैती, बलात्कार, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि से छुटकारा प्राप्त हो जाता है ।वास्तव में वर्तमान युग में वर्धमान के सिद्धांतों की ज्यादा जरूरत है।
व्रत कर्म काटने की कला है ।दान, लाभ, भोग, उपभोग ,वीर्य आदि में आने वाली अंतराय को आसानी से छोड़ा जा सकता है। आध्यात्मिक पाठशाला का प्रवेश द्वार और धर्म के निकट आने का अवसर प्राप्त हो जाता है ।श्रावक के सातवें व्रत के अंतर्गत 26 बोलों के परिमाण में खाने-पीने की वस्तुओं में मुखवास के सेवन की भी मर्यादा करनी चाहिए। मुंह की चिकनाहट मिटाने के लिए तथा आहार करने के पश्चात मुंह साफ करने के लिए एवं भोजन पचाने के लिए विभिन्न प्रकार के मुखवासों का उपयोग किया जा सकता है।
इनमें सुपारी, गुटका आदि तो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं ।अतः इनका सेवन तो वर्जित है ।जबकि लोंग, इलाइची , सौंफ, दालचीनी जैसे मुखवास शरीर के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं। एक आदर्श श्रावक कौन होता है जिसके पास विपुल मात्रा में सामग्री होते हुए भी और भोगने का सामर्थ्य होते हुए भी हर वस्तु के उपयोग का परिमाण कर लेता है और अनावश्यक पाप कर्म के बंध से छुटकारा प्राप्त कर लेता है।
गमनागमन करने के लिए वाहन जैसे दुपहिया चोपहिया बस, ट्रेन, हवाई जहाज आदि में बैठने की मर्यादा की जानी चाहिए। पहनने के लिए जूते, चप्पल, सैंडल इत्यादि की भी सीमाएं बांधनी चाहिए ।
सोने और बैठने योग्य कुर्सी, शयन आदि की मर्यादा भी करनी चाहिए ।सचित पदार्थों के सेवन से बचने का प्रयास करना चाहिए यदि वह ना हो सके तो कम से कम सचित पदार्थों की सीमा तो अवश्य बांध लेनी चाहिए ।प्रतिदिन द्रव्यों की मर्यादा करने से सहज में ही उन्नोदरी तप करने का अवसर उपस्थित हो जाता है ।
सातवें व्रत के पांच अतिचार से भी बचने का प्रयास होना चाहिए ।अधूरे पक्के हुए या अधिक पक्के हुए या गलत तरीके से पक्के हुए आहार का भक्षण नहीं करना चाहिए । अन्न एक प्रकार की औषधि होती है।
जो भोजन तुच्छ है पौष्टिक नहीं है खाने योग्य कम और फेंकने योग्य ज्यादा है ऐसे आहार से भी बचने का प्रयास करना चाहिए सातवें व्रत के अनेकानेक लाभ बताए गए हैं जिसमें आत्मा और शरीर दोनों का संबंध जुड़ा हुआ है ।स्वास्थ्य की दृष्टि से एवं अनावश्यक कर्म बंध से निजात प्राप्त करने के लिए श्रावक को इन व्रतों को अंगीकार करना चाहिए। साथ ही विवेक पूर्ण दैनिक गतिविधि होने से जिंदगी भी अनुशासित रहती है।
धर्म सभा में उपस्थित श्रावक श्राविकाओं को शिविर के दौरान अपनी जिज्ञासाओं को पूछने का भी अवसर प्रदान किया गया ।

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