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 कर्म करोगे तो फल मिलेगा :गुरुदेव रविंद्र मुनि जी”नीरज”

 कर्म करोगे तो फल मिलेगा :गुरुदेव रविंद्र मुनि जी”नीरज”

कर्म का मतलब है पुरुषार्थ मेहनत क्रिया। आप कर्म करोगे तो फल मिलेगा जैसा करोगे वैसा फल मिलेगा। खिलाकर खुश रहने की भावना रखें, आपके हाथों में कर्म करने की क्षमता है तुम जैसा चाहो वैसा कर सकते हो लेकिन फल के लिए हमें पुरुषार्थ तो करना ही पड़ेगा क्योंकि बिना पुरुषार्थ के भगवान भी हमारी सहायता नहीं कर सकते हैंl यदि आप हमेशा किस्मत के भरोसे बैठे रहना पसंद करते हैं तो आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।

दिवाकर भवन पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मेवाड़ गौरव प्रखर वक्ता पूज्य गुरुदेव रविंद्र मुनि जी”नीरज” ने फरमाया कि कर्म का मतलब है किसी क्रिया या कार्य का प्रदर्शन। यह हिंदु धर्म और दर्शन में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जिसके अनुसार व्यक्ति के कर्म उसके जीवन के भविष्य में प्रभाव डालते हैं।

यह आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के साथ जुड़ा होता है और जीवन के अनुभवों को समझाने में मदद करता है। कर्म का मतलब है किसी क्रिया या कार्य का प्रदर्शन, या फलना। यह हिंदी धर्म और दर्शन में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जिसके अनुसार व्यक्ति के कर्म उसके जीवन के भविष्य में प्रभाव डालते हैं। यह आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के साथ जुड़ा होता है और जीवन के अनुभवों को समझाने में मदद करता है। कर्म करने का धर्म अपने संबंध में व्यक्ति की आधारभूत नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। हर व्यक्ति का धर्म अलग-अलग होता है और यह उनके मूल्य, धार्मिक आचरण और जीवन के परिस्थितियों पर आधारित होता है।

कुछ लोग नियमित कर्म करने का धर्म मानते हैं जो समाज में न्याय, धार्मिक अनुष्ठान और परिवार के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। दूसरे लोग निस्वार्थ कर्म, सेवा, दान, और मानवता के प्रति अनुकरण का पालन करने को धर्म मानते हैं। साथ ही, अपने कर्म में सत्य, ईमानदारी, और प्रेम रखना भी कई धर्मों में महत्वपूर्ण सिद्धांत होता है। अंततः, धर्म का सार है अपने कर्मों से अच्छे के साथ रहना, अन्यों की मदद करना, और समस्त समाज के हित के लिए योगदान देना।

उपरोक्त जानकारी देते हुए श्री संघ अध्यक्ष इंदरमल टुकडिया कार्यवाहक अध्यक्ष ओम प्रकाश श्रीमाल ने बताया की गुरुदेव प्रतिदिन कथानक के माध्यम से रुकमणी मंगल की कथा का श्रवण सैकडो की संख्या मे श्रावक श्राविका कर रहे हैं ताल निवासी प्रकाशचंद्र जी पितलीया ने 35 उपवास के प्रत्याख्यान गुरुदेव से लिये। धर्मसभा का संचालन महामंत्री महावीर छाजेड़ ने किया आभार श्रीसंघ उपाध्यक्ष विनोद ओस्तवाल ने माना।

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