चेन्नई. कांकारिया भवन किलपॉक में विराजित साध्वी मुदितप्रभा ने मैं और मेरा जीवन विषय पर पर कहा अपने पाप कर्म के उदय के कारण हम आज जिनवाणी का श्रवण कर पा रहे हैं। कर्म बीज का मूल राग और द्वेष है।
भगवान की अंतिम देशना में कर्म के बीज राग और द्वेष को बताया है। भगवान ने कहा है हमें सयंम को थाम कर रखना है। जहां जीवन है वहां परिस्थितियां बदलती रहेंगी। यह सब हमारे ऊपर निर्भर है कि हम कैसे रिएक्ट करे।
व्यक्ति अपनी अपनी धारणा से शासन मानते है। पर यह शासन हमें तिराने वाला नहीं है। जिनशासन ही हमें इस संसार से तिरा सकता है। गुरु की कृपा बिना कुछ नहीं है। हमारा वर्तमान हमारे सामने है। हमें अपना वर्तमान को अच्छा बनाना है।
हमारे पूर्व कर्मों के बैलेंस शीट हमारे जन्म के साथ आती है। आज का मुनाफा और नुकसान हमारे पूर्व पुण्य व पाप की बैलेंस शीट है। अंतराय कर्म के कारण राजा सबका मालिक होता है। अपने राजकोष पर राजा का पूर्ण अधिकार होते हुए भी खजांची से इजाजत लिए बिना पैसा नहीं ले सकता है।
अंतराय कर्म एक गेटकीपर है। हमें अपने इस भव के गेट कीपर को हटाना है। आज हम कितने ही खुश हो कि हमने बहुत मुनाफा कमा लिया पर हमें अपने इस भव को सुधारना है तो पुराने को भुलाना ही है।
इस अवसर पर श्री एस एस जैन संघ किलपॉक के तत्वावधान में तपस्या की अनुमोदना के लिए नवकार महामंत्र का जाप रखा गया। साध्वी इंदुबाला ने मंगलपाठ सुनाया।