जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता चलती रहती है। प्रतिकूल परिस्थितियों के कई रूप है। जैसे- मानसिक, शारीरिक, सामाजिक। जो व्यक्ति कर्मवाद की अवधारणा से परिचित है वह अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों में समता भाव रखता है। उपरोक्त प्रेरणा पाथेय महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण ने प्रवचन सभा में व्यक्त किये।
तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने आगे कहा कि जिस व्यक्ति में सकारात्मक चिंतन का अभाव होता है या आध्यात्मिक उत्कर्ष का विकास नहीं हुआ हो वह कष्ट आने से पहले ही डरने लगे जाता है। हर व्यक्ति यह ध्यान में रखे कि कर्मों के फल को आध्यात्मिक चिंतन कर सकारात्मक रूप से सहन करे तो जीवन में दुःख महसूस नहीं होता।
भिक्षु स्वामी की बड़ी तेरस के संदर्भ में आचार्य श्री ने आगे कहा कि धम्म जागरणा के लिए बेंगलुरु के श्रावक समाज में अति उत्साह देखा। रात्रि में भी बेंगलुरु का समाज अच्छी संख्या में उपस्थित होकर आचार्य भिक्षु को श्रद्धा सुमन करने पहुंचा।
चतुर्दशी के अवसर आचार्य श्री महाश्रमण ने मर्यादा पत्र का वाचन करते हुए सभी को सेवा की महत्ता के बारे में बताया। साथ ही साधु-साध्वियों को प्रतिलेखन, प्रतिक्रमण, इर्यासमिति आदि के लिए प्रशिक्षण दिया। आचार्यवर के आव्हान पर अनेक साधु-साध्वियों में सेवा पर अपने विचार रखे। सेवा के संदर्भ में संघ महानिदेशिका साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने भी इतिहास की घटनाओं का उल्लेख किया।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर शांतिदूत से उनका वार्तालाप भी हुआ। प्रवचन के दौरान राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सावंत ने शांतिदूत से आशीर्वाद ग्रहण किया। चातुर्मास व्यवस्था समिति के परामर्शक श्री कन्हैयालाल गिडिया ने सभा में डॉ. सावंत के बारे में जानकारी दी।
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