चेेन्नई. किलपॉक स्थित कांकरिया हाउस में विराजित साध्वी इंदुबाला एवं अन्य सहवर्तिनी साध्वीवृन्द के सान्निध्य में आचार्य शोभचंद का पुण्य दिवस मनाया गया। इस अवसर पर साध्वी इंदुबालाजी ने आचार्य शोभचन्द के जीवन चरित्र का विवेचन किया और कहा कि उनके जीवन में विनय का गुण उच्च कोटि का था।
इससे पूर्व मुदितप्रभा ने युवाओं की प्रवचन माला जिनशासन की पुकार में आत्मा का ज्ञान और आत्मा का विज्ञान के तहत प्रवचन के विषय मैं कहां आ गया हूं, मुझे कहां जाना है पर उद्बोधन देते हुए कहा कि जगत के स्वरूप का चिंतन भी वैराग्य प्राप्त का कारण बन सकता है। आत्मा के साथ कर्म का संबंध होता है।
जीव आत्मा है। कर्म अजीव है। संसार एक अवस्था है। आत्मा के साथ जब तक कर्म लगे हुए हैं, तब तक संसार है। अवस्था प्राप्त हो गई तो स्वत. ही स्थान मिल जाएगा। इस संसार से यदि मुक्त होना है तो चिंतन करना होगा कि मैं कहा आ गया हूं और मुझे कहां जाना है। संसार में दुख ही दुख है जबकि मोक्ष में सुख और आनंद है। आत्मा कर्मों के कारण नाटक करवाती है। हमें कर्मों को आत्मा से निकालना है।