बेंगलूरू। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने आचार्य तुलसी चेतना केंद्र के महाश्रमण समवसरण में अपने प्रवचन में बुधवार को कहा कि जैन दर्शन के कर्मवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन आगमवाङ्मय में प्राप्त होता है। कर्म भी निर्जीव तत्व है।
जीव के द्वारा अपने भावों द्वारा उन्हें आकृष्ट किया जाता है और कालविपाक के साथ वे कर्म अपना फल भी देते हैं। आठ कर्मों में मोहनीय कर्म विकृति पैदा करने वाला है। वह आदमी को शराबी की भांति उन्मत्त बना देता है। परिणामत: आदमी करणीय और अकरणीय का विवेक भूल जाता है।
वह गुस्से ए अहंकार आदि विकृतियों में चला जाता है। कार्यक्रम से पूर्व कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री अश्वत्थ नारायण आचार्यश्री के दर्शनार्थ पहुंचे। आचार्यश्री ने उन्हें अहिंसा यात्रा की जानकारी दी। श्री नारायण ने विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास हेतु अपना चिंतन प्रस्तुत किया तो आचार्यश्री ने उन्हें जीवन विज्ञान की अवगति प्रदान की।
श्री नारायण ने आचार्यश्री से आशीर्वाद बनाए रखने की प्रार्थना की। आचार्यश्री ने उन्हें राजनीति में शुद्धता और मूल्यवत्ता बनाए रखने की प्रेरणा दी। इस अवसर पर प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मूलचंद नाहर, महामंत्री दीपचंद नाहर, कोषाध्यक्ष प्रकाश लोढा, उपाध्यक्ष गौतम मूथा, लक्ष्मीपत दुधेड़ीया ने उप मुख्यमंत्री को साहित्य भेंट कर सम्मान- स्वागत भी किया और आचार्यश्री से अहिंसा यात्रा के बारे में खुलकर चर्चा-परिचर्चा की। उन्होंने बताया कि राजाजीनगर के विधायक के रुप में पूर्व में दर्शन किए थे और अब उपमुख्यमंत्री बनने के बाद आज पुन: दर्शन किए हैं।