इस साल 1 नवंबर को करवा चौथ की पूजा चंद्र दर्शन व चंद्र अर्घ से पूर्ण होगी। 1 नवंबर को सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करते हुए । करवा चौथ की पूजा करती है , करवा चौथ की कथा का पाठ किया जाता है।
इस दिन महिलाएं सवेरे से व्रत रखकर शाम को चंद्र दर्शन करने के बाद भोजन करती है ।
करवा चौथ की कथा
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी । कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर सेठानी उसकी बहू और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात के दौरान साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन करने का आग्रह किया फिर बहन ने अपने भाई को बताया कि आज उसने करवा चौथ का व्रत रखा है।
चांद को अर्ध्य देकर ही व्रत का पारायण कर सकती है । भाइयों से बहन की यह हालत देखी नहीं जा रही थी फिर सबसे छोटे भाई ने दूर पेड़ पर दीपक जलाकर छलनी की आड़ में रख देता है। वह दीपक ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि चतुर्थी का चाँद हो उसे देखकर सातों भाई की इकलौती बहन अर्ध्य देकर भोजन करने बैठ जाती है । जैसे ही वह पहला निवाला मुंह में डालती है उसे छींक आने लग जाती है दूसरे निवाला में बाल निकलता है और तीसरा निवाला मुंह में डालती है, तब उसके पति की मौत की खबर उसे मिलती है, वह बेहद दुखी हो जाती है। तब उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसे के साथ ऐसा क्यों हुआ व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं इस पर बहन करवा संकल्प लेती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी ,और अपने अस्तित्व से उसे पुनर्जीवित करके रहेगी।
वह पूरे साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है और देखभाल करती है उसके ऊपर उगने वाली सुई में घास को इकट्ठा करती जाती है एक साल बाद फिर करवा चौथ के दिन वह व्रत रखती है शाम को सुहागिन से अनुरोध करती है व चौथ माता से अनुरोध की आप उसे अपनी जैसी सुहागन बना दो और उनके पाँव पकड़ कर प्राथना करती है । इस तरह से उसका व्रत पूरा होता है और उसके सुहाग को नए जीवन का आशीर्वाद मिलता है करवा चौथ की कथा को अलग-अलग तरीके से कहानी सुनकर पूजा पूरी की जाति है ।